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________________ ( अष्ट पाहड़ ) स्वामी विरचित Entreste-VASHTRAVE आचार्य कुन्दकुन्द De Desh foot 戀戀樂業先崇崇步骤先崇先業業先崇崇崇業業業事業蒸蒸 के ज्ञानी जो आचार्य हुए उनमें से कुछ के नाम ये हैं अर्हदबलि, माघनंदि, धरसेन, पुष्पदंत, भूतबलि, जिनचन्द्र, कुन्दकुन्द, उमास्वामी, समन्तभद्र, शिवकोटि, शिवायन, पूज्यपाद, वीरसेन, जिनसेन और नेमिचन्द्र इत्यादि। उनके पीछे उनकी परिपाटी में जो आचार्य हुए उनसे अर्थ का व्युच्छेद नहीं हुआ। इस प्रकार दिगम्बरों के सम्प्रदाय में तो प्ररूपणा यथार्थ है तथा अन्य श्वेताम्बरादि जो वर्द्धमान स्वामी से परम्परा मिलाते हैं वह कल्पित है क्योंकि भद्रबाहु स्वामी के पीछे कुछ मुनि जो अकाल में भ्रष्ट हुए वे अर्द्धफालक कहलाए, उनके सम्प्रदाय में श्वेताम्बर हुए उनमें 'देवगण' नामक साधु उनके सम्प्रदाय में हुआ है, उसने सूत्र रचे हैं जिनमें उसने शिथिलाचार को पुष्ट करने के लिए कल्पित कथा तथा कल्पित आचरण का कथन किया है सो प्रमाणभूत नहीं है। पंचम काल में जैनाभासों के शिथिलाचार की अधिकता है सो युक्त है क्योंकि इस काल में सच्चे मोक्षमार्ग की विरलता है इसलिए शिथिलाचारियों के सच्चा मोक्षमार्ग कहाँ से होगा-ऐसा जानना। अब यहाँ कुछ द्वादशांग सूत्र तथा अंगबाह्य श्रुत का वर्णन लिखते हैं-तीर्थंकरों के मुख से उत्पन्न हुई जो सर्व भाषामयी दिव्यध्वनि उसको सुनकर चार ज्ञान और सात ऋद्धियों के धारक गणधर देवों ने अक्षर पदमय सूत्रों की रचना की सो सूत्र दो प्रकार का है-१. अंग और २. अंगबाह्य। उनके अपुनरुक्त अक्षरों की संख्या बीस अंक प्रमाण है। वे अंक 'एक कम एकट्टी' प्रमाण हैं सो ऐसे१८४४६७४४०७३७०६५५१६१५-इतने अक्षर हैं। उनके पद किए जाएं तब एक मध्यम पद के 'सोलह सौ चौंतीस करोड़, तिरासी लाख, सात हजार, आठ सौ अट्ठासी अक्षर कहे गए हैं, उनका भाग देने पर एक सौ बारह करोड़, तिरासी लाख, अट्ठावन हजार, पाँच-इतने होते हैं। ये जो पद हैं वे तो बारह अंग रूप सूत्र के पद हैं और अवशेष बीस अंकों में जो अक्षर रहे वे अंगबाह्य श्रुत कहलाते हैं वे 'आठ करोड़, एक लाख, आठ हजार, एक सौ पिचहत्तर' हैं जिन अक्षरों में चौदह प्रकीर्णक रूप सूत्र रचना है। अब इन द्वादशांग रूप सूत्र रचना के नाम और पद संख्या लिखते हैं :(१) प्रथम अंग 'आचारांग' है उसमें मुनीश्वरों के आचार का निरूपण है। उसके पद 'अठारह हजार' हैं। 崇明崇明崇明聽聽聽聽騰騰崇勇兼業助兼業 崇养崇崇崇崇崇崇崇崇勇攀藤勇攀事業樂業禁帶男
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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