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प्रारम्भिक सूक्ति
कल्याण के, सुख के वांछकों को जिनसूत्र का सेवन निरन्तर करना योग्य है।
जो सूत्र का ज्ञाता होता है उसके चैतन्य चमत्कारमयी अपनी आत्मा स्वसंवेदन से प्रत्यक्ष अनुभव में आती है।
अतः वह संसार में नष्ट नहीं होता
वरन् उस संसार का नाश करता है।
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