________________
अष्ट पाहुड़
स्वामी विरचित
o आचार्य कुन्दकुन्द
SARAMMU
HDooja
FDo
ADDOG/
MAMAYA WANAMANAS
OLOG ROCH
यदि शील बिन बस ज्ञान से ही, विशुद्धि बुधजन ने कही। दशपूर्वधर का भाव कहो फिर, क्यों नहिं निर्मल हुआ ! ।।३१।।
अर्थ यदि शील बिना ज्ञान ही से 'विशोध' अर्थात् विशुद्ध भाव पंडितों ने कहा हो तो दश पूर्व को जानने वाला जो रुद्र उसका भाव निर्मल क्यों नहीं हुआ ! इसलिए जाना जाता है कि भाव भी निर्मल शील ही से होते हैं।
भावार्थ कोरा ज्ञान तो ज्ञेय का ज्ञान ही कराता है उसमें यदि मिथ्यात्व व कषाय हों तब वह विपर्यय हो जाता है इसलिए मिथ्यात्व एवं कषाय का मिटना ही शील | है। इस प्रकार शील के बिना मात्र ज्ञान ही से मोक्ष सधता नहीं। शील के बिना
यदि मुनि हो जाये तो भी भ्रष्ट हो जाता है इसलिए शील को ही प्रधान जानना ||३१||
樂樂男男飛崇崇禁禁禁禁禁禁禁禁禁藥男男戀
उत्थानिका
崇崇崇崇崇崇崇崇崇崇勇攀樂事業事業蒸蒸男崇勇樂
आगे कहते हैं कि 'यदि नरक में भी हो परन्तु विषयों से विरक्त हो तो वहाँ से
निकलकर तीर्थंकर पद पाता है' :जाए विसयविरत्तो सो गमयदि णरयवेयणा पउरा। ता लेहदि अरुहपयं भणियं जिणवड्ढमाणेण।। ३२।।
नहिं प्रचुर नरक की वेदना, करे दुःखी विषयविरक्त को। फिर पाता वह अर्हन्तपद, जिन वर्द्धमान ने यह कहा ।।३२ ।।
अर्थ
जो विषयों से विरक्त है वह जीव नरक में बहुत वेदना है उसको भी गँवाता है अर्थात् वहाँ भी अति दुःखी नहीं होता है और वहाँ से निकलकर तीर्थंकर होता है-ऐसा जिन वर्द्धमान भगवान ने कहा है।
禁禁禁禁禁禁藥騰崇崇崇崇勇兼業助