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आचार्य कुन्दकुन्द
गया !
● अष्ट पाहुड़
उत्थानिका
आगे कहते हैं कि 'शील के बिना ज्ञान ही से मोक्ष नहीं है इसका उदाहरण कहते हैं :
स्वामी विरचित
जइ विसयलोलहिं णाणीहिं हविज्ज साहिदो मोक्खो ।
तो सो सुरुद्दपुत्तो' दसपुव्वीओ वि किं गदो णरयं ! ।। ३० ।।
यदि विषयलोलुप ज्ञानियों ने, मोक्ष साधा होय तो ।
दशपूर्वधारी रुद्रपुत्र सो, नरक में फिर क्यों गया ! | |३० । ।
अर्थ
विषयों मे 'लोल' अर्थात् लोलुप, आसक्त और ज्ञान सहित - इस प्रकार से
ज्ञानियों ने यदि मोक्ष साधा हो तो दस पूर्व का जानने वाला रुद्रपुत्र नरक क्यों
भावार्थ
कोरे ज्ञान ही से मोक्ष किसी ने साधा ऐसा यदि कहें तो दस पूर्व का पाठी रुद्र
नरक क्यों गया इसलिए शील बिना कोरे ज्ञान ही से मोक्ष नहीं है । रुद्र कुशील
सेवन करने वाला हुआ, मुनिपद से भ्रष्ट होकर उसने कुशील सेवन किया इसलिए
नरक गया—यह कथा पुराणों में प्रसिद्ध है । । ३० ।।
उत्थानिका
आगे कहते हैं कि 'शील बिना ज्ञान ही से भाव की शुद्धता नहीं होती'
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जइ णाणेण विसोहो सीलेण विणा बुहेहिं णिद्दिट्ठो ।
दसपुव्वियस्स भावो य ण किं पुण णिम्मलो जादो ।। ३१ ।।
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टि0 - 1. यह इस अवसर्पिणी काल का अन्तिम ग्यारहवां रुद्र था जिसकी सात वर्ष कुमार काल, चौंतीस
वर्ष संयमकाल व अट्ठाईस वर्ष तपः भंगकाल - इस प्रकार उनहत्तर वर्ष की आयु थी और मरकर तीसरे नरक गया था ।
(८-३२
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