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क्रमांक
विषय
पष्ठ
८-१८
८-१६
८-२०
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المر
८-११ ८-२२
१४. बहुशास्त्रज्ञ भी शील, व्रत और ज्ञान रहित कुमत-कुशास्त्र के
प्रशंसक अनाराधक हैं १५. शील, गुण रहित रूप, कान्ति व लक्ष्मीयुक्त जनों का भी
मनुष्य जन्म निरर्थक है १६. व्याकरण, छंदशास्त्र व जिनागम आदि का ज्ञान होने पर भी
उनमें शील ही सर्वोत्तम है १७. 'शीलगुणमंडित' देवों के भी प्रिय और 'दुःशील शास्त्रज्ञानी'
मनुष्यों के भी अप्रिय हैं। १8. लौकिक सर्व सामग्री से न्यून भी शील सहित पुरुष का
मनुष्य जीवन सफल है ११. जीवदया और इन्द्रियदमन आदि शील के परिवारभूत गुण है २०. शील की भारी महिमा-यह ही विशुद्ध तप, दर्शन, ज्ञान आदि • रूप है एवं यह ही मोक्ष की पैड़ी है २१. सर्व विषों में विषय रूपी विष दारुण है २२. विष की वेदना से एक बार मरण पर विषयविषपरिहत का
संसार वन में अतिशय भ्रमण २३. विषयासक्त जीवों को चारों गतियों के दुःखों का भोग। २४. तप व शीलवान पुरुषों द्वारा विषयों का खल के समान परिहार २५. सुन्दर सर्वांगों के प्राप्त होने पर भी सबमें शील नामक अंग
ही उत्तम रूप है २६. कुमतमूढ़ व विषयासक्त कुशील जीवों का अरहट घड़ी के
समान संसार परिभ्रमण २७. जीव विषय राग से कर्म ग्रंथि को बाँधता व शील द्वारा
खोलता है
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