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अनुक्रम
पष्ठ
८-७
८-८
५-६
८-१०
८-११
1. गाथा विवरण क्रमाक
विषय १. आचार्यदेव की मंगलाचरणपूर्वक शील प्रतिपादन की प्रतिज्ञा २. शील व ज्ञान में अविरोध, शील के बिना विषयों के द्वारा
ज्ञान का घात ३. ज्ञान की, ज्ञानभावना की व विषय विरक्ति की उत्तरोत्तर
दुर्लभता विषयों में रत को ज्ञान की प्राप्ति नहीं और ज्ञान के बिना
विषयविरक्त के भी कर्मक्षपण नहीं ५. चारित्रहीन ज्ञान, दर्शनहीन लिंगग्रहण व संयमहीन तप
निरर्थक है ६. चारित्रशुद्ध ज्ञान, दर्शनविशुद्ध लिंगग्रहण और संयम सहित
थोड़ा तप भी महा फलदायक है ७. ज्ञान को जानकर भी विषयों में आसक्त जन का चतुर्गति में
हिण्डन 8. विषयविरक्त व ज्ञानभावना सहित तपस्वी का चतुर्गति बन्धछेदन 9. निर्मल ज्ञान जल के द्वारा जीव की विशुद्धता का
दष्टान्तपूर्वक समर्थन १०. ज्ञानगर्वित होकर विषयरत होने में ज्ञान का दोष नहीं,
कुपुरुष का दोष है ११. सम्यक्त्व सहित ज्ञान, दर्शन, तप एवं चारित्र से निर्वाण १२. विषयविरक्त, दर्शनशुद्ध और द ढ चारित्रधारी जीवों का नियम
से निर्वाण होता है १३. विषय विमोहित भी सन्मार्ग निरूपकों को मार्ग प्राप्ति,
उन्मार्ग प्ररूपकों का ज्ञान भी निरर्थक
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