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गाथा ६५,६६
GORO
जो मिथ्यादृष्टि जीव है वह जन्म-जरा-मरण से प्रचुर
और हजारों दुखों से व्याप्त इस संसार में सुख से रहित हुआ भ्रमण करता है।
बहुत प्रलाप रूप कथन से क्या लाभ !
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जन्म
सम्यक्त्व गुण रूप है
और मिथ्यात्व दोष रूप है
ऐसा मन से अच्छी तरह भावना करके
जो तेरे मन को रुचे वह कर।
| जरा
मरण
६-११८