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गाथा ८७-८८
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अतीत काल
जो सम्यक्त्व का ध्यान करता है वह जीव सम्यग्दृष्टि होता है। और सम्यक्त्व रूप परिणमित हुआ वह दुष्ट आठ कर्मों का क्षय करता है।
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मी काल
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अधिक कहने से क्या? जो उत्तम परुष अतीत काल में सिद्ध हुए और जो भव्य जीव आगामी काल में सिद्ध होंगे, उस सबको तुम सम्यग्दर्शन का ही
माहात्म्य जानो।
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