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मोक्षमार्ग सम्यग्दर्शनज्ञान
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गाथा ७६,८०, ८२
बाईस परिषहों को सहने वाले,
Tha
पुत्र मित्रादि
के मोह से रहित,
पाप
व आरम्भ
से दूर,
सम्यक चारित्र
वैराग्य परम्परा के विचारक,
देव और गुरु के
भक्त,
कषायों
के
विजेता,
निर्दोष चारित्र के
पालक
परिग्रह से रहित,
ध्यान में एवं रत
जीव मोक्षमार्ग में अंगीकृत हैं।
६-११४
जिनवरेन्द्र का लिंग धारण करके भी जो पाप से मोहितबुद्धि मनुष्य पाँच प्रकार के वस्त्रों में आसक्त, परिग्रह को ग्रहण करने वाले, याचनाशील तथा अधः कर्म-निंद्यकर्म में रत हैं। वे पापी मोक्षमार्ग से च्युत हैं।