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तीन अर्थात्
तीन अर्थात्
तीन अर्थात्
2
गाथा ४४
दो अर्थात्
मन
मिथ्या
3-3
तीन अर्थात्
माया
द
र्श
न
ग
वचन व
काय
शी त ष्ण
और
६-११३
के द्वारा
ज्ञा
न
तीन काल योगों को धारण करके
निदान
व
शल्यों से रहित होकर
चा
त्र
योगी परमात्मा का ध्यान करता है।
से मंडित
होकर
एवं
रूप दोषों से रहित होकर