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________________ अष्ट पाहुड़ati स्वामी विरचित o आचार्य कुन्दकुन्द TOVAVANVAR CAMWAVY looct DOG Dod Dool| WV WI WAS अर्थ आचार्य कहते हैं कि-(१) जो तप सहित श्रमणपना धारण करते हैं उनको तथा (२) उनके शील को तथा (३) उनके गुण को तथा (४) ब्रह्मचर्य को मैं सम्यक्त्व सहित शुद्धभाव से वंदना करता हूँ क्योंकि उनके उन गुणों से युक्त सम्यक्त्व सहित शुद्धभाव से जो सिद्धि अर्थात् मोक्ष उसके प्रति गमन होता है। भावार्थ पहिले कहा था कि देहादि वंदने योग्य नहीं हैं, गुण वंदने योग्य हैं, अब यहाँ गुणसहित की वंदना की है। वहाँ जो तप धारण करके ग हस्थपना छोड़कर मुनि हुए हैं उनकी तथा उनके सम्यक्त्व सहित शुद्धभाव से युक्त जो शील, गुण एवं ब्रह्मचर्य हैं उनकी वंदना की है। यहाँ 'शील' शब्द से तो 'उत्तरगुण' लेना, 'गुण' शब्द से 'मूलगुण' लेने तथा 'ब्रह्मचर्य' शब्द से 'आत्मस्वरूप' में लीनपना' लेना ।।२८।। उत्थानिका र उत्थानिका 崇崇养崇崇崇崇崇崇崇明藥藥事業業帶男崇勇勇崇 आगे कोई आशंका करता है कि 'संयमी को वंदने योग्य कहा तो समवशरणादि विभूति सहित तीर्थंकर हैं वे वंदने योग्य हैं कि नहीं?' उसके समाधान को गाथा कहते हैं कि 'जो तीर्थंकर परमदेव हैं वे सम्यक्त्व सहित तप के माहात्म्य से तीर्थंकर पदवी पाते हैं सो वे भी वंदने योग्य हैं' :चउसट्ठिचमरसहिओ चउतीसहिं अइसएहिं संजुत्तो। अणवरबहुसत्तहिओ कम्मक्खयकारणणिमित्तो।। २९।। चौंसठ चमर से सहित जो, चौंतीस अतिशय युक्त हैं। बहप्राणि हितकारी निरंतर, कर्म क्षय के निमित हैं।।२९।। 樂樂养添馬添樂樂先崇勇兼崇勇攀事業事業事業蒸蒸勇攀勇 | टि०-1. इस पंक्ति के प्रथम चरण में 'श्रु० टी०' में 'अणुचरबहुसत्तहिओ' (सं०-अनुचरबहुसत्त्वहित:) पाठ देकर अर्थ किया है कि वे भगवान 'अनुचर' अर्थात् 'विहारकाल में पीछे चलने वाले सेवकों' तथा 'बहुसत्त्व' अर्थात् 'अन्य अनेक जीवों को', 'हित:' अर्थात् स्वर्ग मोक्ष के दायक' हैं एवं वी० प्रति' में 'अणुचरइ बहुसत्तसहिउ' पाठ देकर अर्थ किया है कि वे बहुत जीवों सहित विहार करते हैं।' 藥業藥業樂業坊 || 業巩巩業听器听听听听
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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