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________________ अष्ट पाहुड state स्वामी विरचित . . आचार्य कुन्दकुन्द I moale Doo HD09/ आरुहवि अंतरप्पा बहिरप्पा छंडिऊण तिविहेण । झाइज्जइ परमप्पा उवइ8 जिणवरिंदे हिं।। ७ ।। तू अन्तरात्म का आश्रय ले, तज बहिर त्रिविध प्रकार से। परमात्मा का ध्यान धर, है जिनवरेन्द उपदेश यह ।। ७ ।। अर्थ बहिरात्मपने को मन-वचन-काय से छोड़कर और अन्तरात्मा का आश्रय लेकर परमात्मा का ध्यान करो-यह जिनवरेन्द्र तीर्थंकर परमदेव ने उपदेश दिया है। भावार्थ परमात्मा के ध्यान करने का उपदेश प्रधान करके दिया है, इससे मोक्ष प्राप्त होता है।७।। 添添添添添馬樂樂男崇崇崇勇樂樂事業禁勇攀牙樂事業 柴柴先崇崇先帶禁藥業業先崇崇勇崇勇兼業助兼業助業%崇明 आगे बहिरात्मा की प्रव त्ति कहते हैं :बहिरत्थे फुरियमणो इंदियदारेण णियसरूवचओ । णियदेहं अप्पाणं अज्झवसदि मूढदिट्ठीओ।। 8।। है फुरितमन बाह्यार्थ इन्द्रिय, द्वार से स्व स्वरूप च्युत। निजदेह को जाने निजात्मा, मूढ़द ष्टि जीव वह ।। 8 ।। अर्थ मूढ़द ष्टि-अज्ञानी मोही मिथ्याद ष्टि है सो बाह्य पदार्थ जो धन-धान्य एवं कुटुम्ब आदि इष्ट पदार्थ उनमें स्फुरायमान है-तत्पर है मन जिसका तथा इन्द्रिय द्वार से अपने स्वरूप से च्युत है-इन्द्रियों ही को अपना जानता है और ऐसा होता हुआ जो अपनी देह है उस ही को आत्मा जानता है, निश्चय करता है-ऐसा मिथ्याद ष्टि बहिरात्मा है। 崇明業業崇崇明藥業| 崇勇崇崇勇崇勇崇明崇崇勇
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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