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अनुक्रम 1. गाथा विवरण क्रमांक विषय
पष्ठ १. मंगल के लिए परमात्मा को नमस्कार २. नमस्कारपूर्वक ग्रन्थ करने की प्रतिज्ञा ३. परमात्मा के ध्यान से निर्वाण की प्राप्ति
६-१० ४. आत्मा के तीन प्रकार और उनमें हेय, उपाय एवं उपेय का निर्णय
६-११ ५. त्रिविध आत्मा का स्वरूप
६-१२ ६. परमात्मा के विशेषण
६-१३ ७. बहिरात्मा को छोड़कर अन्तरात्मा होकर परमात्मा को ध्याओ ६-१३ 8-११. बहिरात्मा का लक्षण एवं परिणति
६-१४-१६ १२. देह से निरपेक्ष एवं आत्मस्वभाव में सुरत ही निर्वाण पाता है ६-१७ १३. परद्रव्य में रत बंधता है और विरत छूटता है-यह बंध-मोक्ष
विषयक संक्षिप्त जिनोपदेश है १४. स्वद्रव्यरत सो सम्यग्द ष्टि, उसके ही दुष्टाष्ट कर्मों का क्षपण ६-१८ १५. परद्रव्यरत सो मिथ्याद ष्टि, उसके ही दुष्टाष्ट कर्मों का बंधन ६-१६ १६. परद्रव्यरत की दुर्गति और स्वद्रव्यरत की सुगति
६-२० १७. परद्रव्यों का परिचयन
६-२१ १४. स्वद्रव्य आत्मा ही है
६-२१ ११. परद्रव्य से पराङ्मुख, स्वद्रव्य के ध्यानी को निर्वाण का लाभ ६-२२
२०. शुद्धात्मा के ध्यान से मोक्ष मिलता है तो क्या स्वर्ग नहीं मिलेगा ६-२३ २१-२२. उपर्युक्त कथन की दो द ष्टान्तों के द्वारा पुष्टि
६-२३-२४ २३. तप की अपेक्षा ध्यान से स्वर्ग पाने वाले को मोक्ष का लाभ ६-२४ २४. कालादि लब्धि से आत्मा ही परमात्मा होता है-दष्टान्तपूर्वक कथन ६-२५ २५. अव्रतादि की अपेक्षा व्रत, तप भला है
६-२६ २६. संसार महा समुद्र से निकलने का उपाय-शुद्धात्म तत्त्व का ध्यान ६-२७ २७-२8. आत्मध्यान की विधि
६-२८-२६
६-१८
६-३