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________________ अष्ट पाहुड़ . .at स्वामी विरचित आचार्य कुन्दकुन्द FDOG) -Dool Doole DoA क्या करके कर-संसार को असार जानकर कर। किसके लिए कर-'उत्तम बोधि' अर्थात् सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र की जो प्राप्ति उसके निमित्त कर। भावार्थ दीक्षा लेते हैं तब संसार-देह-भोग को असार जानकर अत्यन्त वैराग्य उत्पन्न होता है वैसे ही 'दीक्षाकालादि' के 'आदि' शब्द से रोगोत्पत्ति एवं मरणकाल आदि जानना, उन कालों में जैसे भाव होते हैं वैसे ही संसार को असार जानकर विशुद्ध सम्यग्दर्शन सहित होते हुए उत्तम बोधि जो जिससे केवलज्ञान उत्पन्न हो उसके लिए दीक्षाकाल आदि की निरन्तर भावना करनी-ऐसा उपदेश है।।११०।। उत्थानिका आगे भावलिंग शुद्ध करके द्रव्यलिंग के सेवन का उपदेश करते हैं : सेवहि चउविहलिंग अभंतरलिंगसुद्धिमावण्णो। बाहिरलिंगमकज्जं होइ फुडं भावरहियाणं ।। १११।। कर प्राप्त अन्तर्लिंग शुद्धि, सेव बाहिर लिंग चतुः । कारण अकार्य है बाह्य लिंग, प्रकट ही भावविहीन का ।।१११।। अर्थ हे मुनिवर ! तू अभ्यन्तर लिंग की 'शुद्धि' अर्थात् शुद्धता को प्राप्त होता हुआ चार प्रकार का जो बाह्म लिंग है उसका सेवन कर क्योंकि जो भाव रहित हैं उनके प्रकटपने बाह्यलिंग अकार्य है अर्थात कार्यकारी नहीं है। भावार्थ जो भाव की शुद्धता से रहित हैं अर्थात अपनी आत्मा का यथार्थ श्रद्धान-ज्ञान-आचरण जिनके नहीं है उनके बाह्य लिंग कुछ भी कार्यकारी नहीं है, कारण पाकर तत्काल बिगड़ता है इसलिए यह उपदेश है कि 'पहले भाव की शुद्धता करके द्रव्यलिंग धारण करना।' सो यह द्रव्यलिंग चार प्रकार का कहा, 業养添馬添明帶禁藥先崇崇崇勇兼崇勇攀事業事業事業劳崇勇 藥業業業漲漲漲漲漲崇崇崇明崇站
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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