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________________ अष्ट पाहुड़ati Var आचार्य कुन्दकुन्द ADOG) ADGE ADOGI TOVAYANVAR CAMWAMI looct lood Dode SANAMANAS Do/ FDoo( 業听听听听听听听听听听听听听听听听听業 अर्थ जैसे व क्ष के मूल से जिसके शाखा आदि परिवार रूप बहुत गुण हैं (यहाँ गुण शब्द बहुत का वाचक है) वैसे ही गणधर देवादि ने जिनदर्शन को मोक्षमार्ग का मूल कहा है। भावार्थ यहाँ जिनदर्शन अर्थात भगवान तीर्थकर देव ने जिस दर्शन को ग्रहण किया उसका ही उपदेश दिया, वह मूलसंघ है जो अट्ठाईस मूलगुण सहित कहा गया है। पांच महाव्रत, पांच समिति, छह आवश्यक, पांच इन्द्रियों को वश में करना, भूमि में सोना, स्नान न करना, वस्त्र का त्याग अर्थात दिगम्बर मुद्रा, केशलोंच करना, एक बार भोजन करना, खड़े होकर भोजन करना एवं दंत धावन नहीं करना-ये अट्ठाईस मूलगुण हैं तथा छियालीस दोष टालकर आहार करना सो एषणा समिति में आ गया, ईर्यापथ सोधकर चलना वह ईर्या समिति में आ गया और दया का उपकरण तो मोर के पंखों की पीछी और शौच का उपकरण कमंडलु का धारण-ऐसा तो बाह्य वेष है। तथा अन्तरंग में जीवादि छह द्रव्य, पंचास्तिकाय, सात तत्त्व और नौ पदार्थों को यथोक्त जानकर श्रद्धान करना तथा भेदविज्ञान से अपने आत्मस्वरूप का अनुभव करना-ऐसा दर्शन जो मत वह मूलसंघ का है। ऐसा जिनदर्शन है सो मोक्षमार्ग का मूल है, इस मूल से मोक्षमार्ग की सारी प्रव त्ति सफल होती है तथा जो इससे भ्रष्ट हुए हैं और इस पंचम काल के दोष से जैनाभास हुए हैं वे श्वेताम्बर, द्राविड़, यापनीय, गोपुच्छपिच्छ और नि:पिच्छ-ऐसे पांच संघ हुए हैं उन्होंने सूत्र सिद्धांत भ्रष्ट किए हैं और बाह्य बेष को पलटकर बिगाड़ा है, वे जिनमत के मूलसंघ से भ्रष्ट हैं, उन्हें मोक्षमार्ग की प्राप्ति नहीं है। मोक्ष की प्राप्ति मूल संघ के श्रद्धान, ज्ञान एवं आचरण ही से है-ऐसा नियम जानना ।।११।। 樂%养添馬添养業樂業男崇榮樂樂事業事業擺第崇勇攀事業 उत्थानिका आगे कहते हैं कि 'जो यथार्थ दर्शन से भ्रष्ट हैं और दर्शन के धारकों से अपनी विनय कराना चाहते हैं वे दुर्गति पाते हैं' : 崇明業業業樂業籌器禁禁禁禁禁禁期
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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