SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 331
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्ट पाहु -ati. स्वामी विरचित आचार्य कुन्दकुन्द FDod. Dec A HD ROCE उत्थानिका 聯繫听器听听器听听听听听听听听听听听听听器垢器 आगे कहते हैं कि 'पढ़ना-सुनना भी भाव के बिना कुछ है नहीं' : पढिएण वि किं कीरइ किं वा सुणिएण भावरहिएण। भावो कारणभूदो सायारणयारभूदाणं' ।। ६६ ।। बिन भाव पढ़ने से किंवा, सुनने से क्या होता अरे ! | सागार-अनगारत्व का, कारणस्वरूप तो भाव है।।६६ ।। अर्थ __ भाव रहित पढ़ने और सुनने से क्या होता है अर्थात् वे कुछ भी कार्यकारी नहीं है क्योंकि श्रावकपने तथा मुनिपने का कारणभूत भाव ही है। भावार्थ मोक्षमार्ग में एकदेश और सर्वदेश व्रतों की प्रव त्ति रूप जो श्रावक-मुनिपना है उन दोनों का कारणभूत निश्चय सम्यग्दर्शनादि भाव हैं, सो भाव के बिना व्रत, क्रिया की केवल कथनी ही कुछ कार्यकारी नहीं है इसलिए ऐसा उपदेश है कि 'भाव के बिना पढ़ने और सुनने आदि से क्या किया जाये, केवल प्रयास मात्र है इसलिए भाव सहित ही कुछ करो तो सफल है।' यहाँ ऐसा आशय है कि 'यदि कोई जाने कि पढ़ना-सुनना ही ज्ञान है तो ऐसा नहीं है, पढ़-सुनके अपने को ज्ञानस्वरूप जानकर अनुभव करने पर भाव जाना जाता है इसलिए बार-बार भावना करके भाव लगाने पर ही सिद्धि है'||६६।। उत्थानिका 先养养樂業禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁禁 आगे कहते हैं कि 'यदि बाह्य नग्नपने ही से सिद्धि हो तो नग्न तो सारे ही होते हैं : टिO-1.'म0 टी0' में पंक्ति में आए हुए इस 'सायारणयारभूदाणं' पाठ की सं0 'साकारानाकारभूतानां' देकर पूरी पंक्ति का अर्थ किया है-'साकार अर्थात् ज्ञान परिणाम और अनाकार अर्थात् दनि परिणाम-इन दोनों ही गुणों की विद्धि का कारण श्रद्धानरूप विद्ध भाव अर्थात् परिणाम है।' F५-७३ 業業藥崇明藥業助業
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy