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आचार्य कुन्दकुन्द
* अष्ट पाहड़
होऊण
उत्थानिका
स्वामी विरचित
आगे 'अशुभ भावना से नीच देव होकर ऐसे दुःख पाता है - ऐसा कहकर इस कथन का संकोच करते हैं :
चउविहविकहासत्तो मयमत्तो असुहभावपयडत्थो । कुदेवत्तं पत्तोस अणंतवाराओ ।। १६।। आसक्त विकथा चतुर्विध, प्रकटार्थ अशुभ ही भाव है । मदमत्त हो पाया अनेकों बार हीन कुदेवपन | | १६ | |
अर्थ
हे जीव ! तू चार प्रकार की विकथा में आसक्त होता हुआ, मद से मतवाला एवं अशुभ भावना ही का है प्रकट में प्रयोजन जिसके - ऐसा होकर अनेक बार कुदेवपने को प्राप्त हुआ।
भावार्थ
स्त्रीकथा, भोजनकथा, चोरकथा एवं राजकथा - इन चार विकथाओं में आसक्त होकर परिणाम लगाया तथा जाति आदि आठ मदों से मतवाला हुआ - इस प्रकार अशुभ भावना ही का प्रयोजन धारण करके अनेक बार नीच देवपने को प्राप्त होकर मानसिक दुःख पाया । यहाँ यह विशेष जानना कि विकथादि से तो नीच देव भी नहीं होता परन्तु यहाँ मुनि को उपदेश है सो मुनिपद धारण करके क्योंकि कुछ तपश्चरणादि भी करता है परन्तु ऐसे वेष में विकथादि में रत होता है तब नीच देव होता है-ऐसा जानना । । १६ ।।
उत्थानिका
आगे कहते हैं कि 'ऐसी कुदेव योनि पाकर वहाँ से चयकर मनुष्य या तिर्यंच होके जब गर्भ में आता है तो उसकी ऐसी व्यवस्था है' :
५-२६
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