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सूक्ति प्रकाश
१. णाणेण लहदि लक्खं तम्हा णाणं च णायव्वं ।। गाथा २०।।' अर्थ-मोक्षमार्ग का लक्ष्य जो अपना निजस्वरूप, वह ज्ञान से ही प्राप्त होता है इसलिए ज्ञान को जानना। २. धम्मो दयाविसुद्धो पव्वज्जा सव्वसंगपरिचत्ता।। २५।। अर्थ-धर्म वह है जो दया से विशुद्ध है और प्रव्रज्या वह है जो सर्व परिग्रह से रहित है। ३. ण्हाएउ मुणी तित्थे दिक्खासिक्खासुण्हाणेण।। २६ ।। अर्थ-शुद्धात्मा रूपी तीर्थ में मुनि को दीक्षा-शिक्षा रूपी उत्तम स्नान से नहाना चाहिए। ४. सम्मत्तगुणविसुद्धो भावो अरहस्स णायव्वो।। ४१।। अर्थ-जो सम्यक्त्व गुण से विशुद्ध है-ऐसा अरहंत का भाव जानना चाहिए। ५. गिहगंथमोहमुक्का पव्वज्जा एरिसा भणिया।। ४५।। अर्थ-ग हनिवास तथा परिग्रह के मोह से रहित प्रव्रज्या कही गई है। ६. णिम्मम णिरहंकारा पव्वज्जा एरिसा भणिया।। ४७।। अर्थ-ममत्व रहित और अंहकार रहित ही प्रव्रज्या कही गई है। ७. णिव्वियार णिक्कलुसा पव्वज्जा एरिसा भणिया।। ५०।। अर्थ-बाह्य-अभ्यंतर विकार से रहित निर्विकार और मलिनभाव रहित निःकलुष प्रव्रज्या कही गई है। 8. मयरायदोसरहिया पव्वज्जा एरिसा भणिया।। ५२।। अर्थ-मद और रागद्वेष से रहित प्रव्रज्या कही गई है। 9. सम्मत्तगुणविसुद्धा पव्वज्जा एरिसा भणिया।। ५३।। अर्थ-सम्यक्त्व गुण से विशुद्ध-निर्मल प्रव्रज्या कही गई है। १०. सज्झाय झाणजुत्ता पव्वज्जा एरिसा भणिया।। ५७।। अर्थ-स्वाध्याय और ध्यान से युक्त प्रव्रज्या कही गई है। ११. सुयणाणि भद्दबाहु गमयगुरु भयवओ जयउ।। ६२।। अर्थ-श्रुतकेवली गमकगुरु भगवान भद्रबाहु जयवंत होवें।
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