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________________ अष्ट पाहुड़attrate वामी विरचित O आचाय कुन्दकुन्द .04 Dod Dod ADOOD 業業業業業業巩業巩巩巩巩業巩業呢業業業宝業業% इम परमारथ मुनि रूप सति, अन्य भेष सब निंद्य हैं। व्यवहार धातु पाषाणमय, आक ति इनिकी वंद्य है।। १।। अर्थ पहला आयतन, दूसरा चैत्यग ह, तीसरी प्रतिमा, चौथा दर्शन, पाँचवां जिनबिम्ब, छठा यतियों की जिनमुद्रा, सातवाँ ज्ञान, आठवाँ देव, नौवाँ तीर्थ, दसवाँ अरहंत एवं ग्यारहवाँ श्री जिनराज के पथ की दीक्षा-ये सब परमार्थ से मुनि के रूप हैं, अन्य सारे वेष निंद्य हैं और व्यवहार से इनकी धातु-पाषाणमय आक ति वंद्य है। दोहा कह्यो वीर जिन बोध यहु, गौतम गणधर धारि। वरतायो पंचम समय, नमूं तिनहिं मद छारि।।२।। अर्थ वीर जिनेन्द्र ने यह बोध कहा, गौतम गणधर ने उसे धारण करके इस पंचमकाल में प्रवर्तन कराया उन्हें मैं मद को छोड़कर नमन करता हूँ। 崇先养养擺擺禁藥男崇崇崇勇兼勇崇勇攀事業蒸蒸勇攀事業 崇崇明業崇崇明崇業 熱騰騰崇明崇明崇崇崇明
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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