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आचार्य कुन्दकुन्द
● अष्ट पाहुड़
भावार्थ
बज्रव षभनाराच आदि छह शरीर के संहनन कहे हैं उनमें सब ही में दीक्षा का
होना कहा है सो जो भव्य पुरुष हैं वे कर्म क्षय का कारण जानकर इसको अंगीकार
करो। ऐसा नहीं है कि जो द ढ संहनन वज्रव षभ आदि हैं उन ही में यह हो और असम्प्राप्तास पाटिका संहनन में न हो, ऐसी निर्ग्रन्थ रूप दीक्षा असम्प्राप्तास पाटिका संहनन में भी होती है । । ५४ ।।
उत्थानिका
स्वामी विरचित
आगे फिर कहते हैं :
तिलतुसमत्तणिमित्तं समबाहरिगंथसंगहो णत्थि ।
पावज्ज हवइ एसा जह भणिया सव्वदरसीहिं ।। ५५ ।।
तिलतुषप्रमाण न बाह्य संग रु, राग तत्कारण नहीं ।
जिनदीक्षा होती वैसी, जैसी सर्वदर्शी ने कही । । ५५ ।।
अर्थ
जिस प्रव्रज्या में तिल के तुष मात्र के संग्रह का कारण ऐसा जो भाव रूप इच्छा नामक अन्तरंग परिग्रह तथा उस तिल के तुष समान बाह्य परिग्रह का संग्रह नहीं है ऐसी प्रव्रज्या जैसी सर्वज्ञदेव ने कही है वैसी ही है, अन्य प्रकार प्रव्रज्या नहीं है - ऐसा नियम जानना ।
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भावार्थ
श्वेताम्बर आदि कहते हैं कि अपवाद मार्ग में वस्त्रादि का संग्रह साधु के कहा है
सो ऐसा सर्वज्ञ के सूत्र में तो कहा है नहीं, उन्होंने कल्पित सूत्र बनाये हैं उनमें कहा
है सो काल दोष है । । ५५ ।।
उत्थानिका
आगे फिर कहते हैं :
४-५३
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