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अष्ट पाहुड़ta
पाहड़M alirates
वामी विरचित
आचाय कुन्दकुन्द
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भोग तथा मोक्ष का कारण ज्ञान-इन चारों को दे तथा यह न्याय है कि जिसके पास जो वस्तु हो वह उसे ही दे सकता है और जिसके पास जो वस्तु न हो वह उसे कैसे दे! इस न्याय से अर्थ, धर्म, स्वर्गादि के भोग और मोक्ष के सुख का कारण जो 'प्रव्रज्या' अर्थात् दीक्षा वह जिसके हो सो देव जानना ।।२४।।
उत्थानिका
आगे धर्मादि का स्वरूप कहते हैं जिसके जानने से देव का स्वरूप जाना
जाता है :धम्मो दयाविसुद्धो पव्वज्जा सव्वसंगपरिचत्ता। देवो ववगयमोहो उदयकरो भव्वजीवाणं ।। २५।।
है धर्म दयाविशुद्ध, दीक्षा सर्व संग से रहित है। हैं देव व्यपगतमोह वे, ही भव्य जीव उदय करें ।।२५ ।।
अर्थ धर्म है सो तो दया से विशुद्ध है, 'प्रव्रज्या' अर्थात् दीक्षा है सो सर्व परिग्रह से | रहित है तथा देव है सो नष्ट हुआ है मोह जिसका-ऐसा है सो ऐसा देव भव्य जीवों के उदय को करने वाला है।
भावार्थ लोक में यह प्रसिद्ध है कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-ये चार पुरुष के प्रयोजन हैं, इनके लिये पुरुष किसी को पूजता है-वंदता है तथा यह न्याय है कि जिसके पास जो वस्तु होती है वह दूसरे को देता है, बिना हुई कहाँ से लावे ! अतः ये चार पुरुषार्थ जिनदेव के पाये जाते हैं-धर्म तो उनके दया रूप पाया जाता है, जिसको साधकर आप तीर्थंकर हुए तब धन की और संसार के भोगों की प्राप्ति हुई और सर्व लोक पूज्य हुए। पुनः तीर्थंकर पदवी में दीक्षा लेकर, सब मोह से रहित होकर परमार्थस्वरूप आत्मीकधर्म को साध के, मोक्षसुख को पाया अतः ऐसे तीर्थंकर जिन हैं सो ही 'देव' हैं। अज्ञानी लोग जिनको देव मानते हैं उनके धर्म, अर्थ, काम और
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