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निःशंकित (१)
उपबृंहण
गाथा ६,७
ऐसे पूर्वोक्त प्रकार सम्यक्त्वाचरण चारित्र को जानकर जिनदेव के द्वारा कहे हुए मिथ्यात्व के उदय से होने वाले
शंकादि सब निम्न दोषों को जो कि
सम्यक्त्व के अशुद्ध करने वाले मल हैं।
B
निःकांक्षित (२)
शंका (१) कांक्षा (२) जुगुप्सा (३) मूढ़दृष्टि (४) अनुपगूहन अस्थितिकरण अवात्सल्य अप्रभावना (c)
(६)
(७)
मन-वचन-काय
से छोड़ो।
निर्विचिकित्सा (3)
स्थितिकरण
३-५३
अमूढदृष्टि (४)
एवं
वात्सल्य
(७)
ये सम्यक्त्व के आठ अंग या गुण हैं।
प्रभावना
(<)