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________________ अष्ट पाहुड़Marat स्वामी विरचित आचार्य कुन्दकुन्द Doo Dodo HDool अतः इसमें अति लोभ के त्याग से परिग्रह का घटाना आया-इस प्रकार पाँच अणुव्रत आते हैं। यहाँ क्योंकि इनके अतिचार टलते नहीं इसलिये यह 'अणुव्रती' नाम नहीं पाता इस प्रकार दर्शन प्रतिमा का धारक भी अणुव्रती है इसलिये देशविरत साकार संयमाचरण में इसको भी गिना है।।२३।। उत्थानिका 添添添添添馬樂樂崇崇%聚樂步步攀事業事業事業事業 आगे पाँच अणुव्रत का स्वरूप कहते हैं :थूले तसकायवहे थूले मोसे अदत्तथूले य। परिहारो परमहिला परिग्गहारंभपरिमाणं ।। २४।। त्रसकायवध, स्थूल झूठ व चोरी जिसमें त्यक्त हों। परिहार परमहिला का अरु परिमाण ग्रंथारम्भ का ।।२४ ।। अर्थ (१) 'थूल' जो त्रसकाय का घात, (२) 'थूलम षा' अर्थात् असत्य, (३) 'थूल अदत्त' अर्थात् पर का बिना दिया धन और (४) 'पर महिला' अर्थात् पर की स्त्री-इनका तो परिहार अर्थात् त्याग तथा (५) परिग्रह और आरम्भ का परिमाण-ऐसे पाँच अणुव्रत हैं। भावार्थ यहाँ 'थूल' कहने का ऐसा अर्थ जानना-जिसमें अपना मरण हो, पर का मरण हो; अपना घर बिगड़े, पर का घर बिगड़े; राजा के दण्ड योग्य हो और पंचों के दण्ड योग्य हो-ऐसे मोटे अन्याय रूप पाप कार्य जानने सो ऐसे स्थूल पाप राजादि के भय से न करे सो व्रत नहीं है, इनको तीव्र कषाय के निमित्त से तीव्र कर्म बंध के निमित्त जान स्वयमेव न करने के भावरूप त्याग हो सो व्रत है।卐 इसके ग्यारह स्थान कहे, उनमें ऊपर-ऊपर त्याग बढ़ता जाता है सो इसकी उत्कृष्टता तक ऐसा है कि जिन कार्यों में त्रस जीवों को बाधा हो ऐसे सब ही कार्य छूट जाते हैं इसलिये सामान्य से ऐसा कहा है कि त्रसहिंसा का त्यागी देशव्रती होता है। इसका विशेष कथन अन्य ग्रन्थों से जानना।।२४।। 業藥業業樂業先崇勇 業業坊崇崇崇明藥業業業兼藥業業事業事業蒸蒸 FAAMRAP .३-२८
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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