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________________ अष्ट पाहड़ate स्वामी विरचित आचार्य कुन्दकुन्द Doo Deol HDool 添添添添添馬樂樂崇崇勇兼宪業樂業樂事業事業事業事業第 साकार तो परिग्रह सहित श्रावक के होता है और निराकार परिग्रह से रहित मुनि के होता है-यह निश्चय है।।२१।। उत्थानिका आगे ‘साकार संयमाचरण' को कहते हैं :दंसण वय सामाइय पोसह सचित्त रायभत्ते य। बंभारंभ परिग्गह अणुमण उद्दिट्टा देसविरदो य।। २२।। दर्शन व व्रत, सामायिक अरु प्रोषध, सचित, निशिभुक्ति अरु। आरम्भ, ब्रह्म, उद्दिष्ट, अनुमति, ग्रंथ त्याग हैं देशविरति ।।२२।। अर्थ दर्शन, व्रत, सामायिक तीन तो ये और प्रोषध आदि आठ का नाम गाथा में पूरे नाम का एकदेश है। पूरे नाम ऐसे कहना-प्रोषध उपवास, सचित्तत्याग, रात्रिभक्तत्याग, ब्रह्मचर्य, आरम्भत्याग, परिग्रहत्याग, अनुमतित्याग और उद्दिष्टत्याग-ऐसे ये ग्यारह प्रकार देशविरत हैं। भावार्थ ये साकार संयमाचरण के ग्यारह स्थान हैं, इनको 'प्रतिमा' भी कहते हैं।।२२।। उत्थानिका |崇养業坊崇崇崇崇崇崇步骤業兼藥事業事業蒸蒸勇崇勇 आगे इन स्थानों में संयम का आचरण किस प्रकार से है सो कहते हैं: पंचेवणुव्वयाइं गुणव्वयाइं हवंति तह तिण्णि। सिक्खावय चत्तारि संजमचरणं च सायारं।। २३|| टिO-1. वी0 प्रति' में दसवीं और ग्यारहवीं प्रतिमा का अर्थ क्रमT: उपदे याहार का त्यागी' और 'उदंडविहारी' (स्वतंत्र विहारी) किया है। 步骤業樂業樂業、 ( A mary
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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