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आचार्य कुन्दकुन्द
* अष्टपाहुड़
स्वामी विरचित
छह अनायतन - कुदेव, कुगुरु, कुशास्त्र और इनके भक्त ऐसे जो छह - इनको
धर्म के स्थान जान इनकी मन से प्रशंसा करना, वचन से सराहना करना एवं काय
से वंदना करना-ये धर्म के स्थान नहीं इसलिए इनको अनायतन कहा 1 ।
आठ मद–जाति, लाभ, कुल, रूप, तप, बल, विद्या एवं ऐश्वर्य - इनका गर्व करना ऐसे आठ मद हैं । यहाँ जाति तो मातापक्ष है और धनादि का लाभ कर्म के उदय
करता है।
के आश्रित है, कुल पितापक्ष है, रूप कर्मोदय के आश्रित है, तप अपना स्वरूप
साधने को है, बल कर्म के उदय के आश्रित है, विद्या कर्म के क्षयोपशम के आश्रित
है और ऐश्वर्य कर्मोदय आश्रित है - इनका गर्व क्या ! परद्रव्य के निमित्त से जो हो
उसका गर्व करना सम्यक्त्व का अभाव बताता है अथवा सम्यक्त्व में मलिनता
इस प्रकार ये पच्चीस सम्यक्त्व के मल दोष हैं, इनका त्याग करने पर सम्यक्त्व
शुद्ध होता है सो ही सम्यक्त्वाचरण चारित्र का अंग है । । ६ । ।
उत्थानिका
आगे शंकादि दोष दूर होने पर सम्यक्त्व के आठ अंग प्रकट होते हैं उनको
कहते हैं :
णिस्संकिय णिक्कंखिय णिव्विदिगिंछा अमूढदिट्ठी य।
उवगूहण ठिदिकरणं वच्छल्ल पहावणा य ते अट्ठ । । ७ । ।
निःशंक, काक्षारहित, निर्विचिकित्स, द ष्टि अमूढ़ औ ।
उपगूहन, स्थितिकरण, वत्सलता, प्रभावना अष्ट हैं । ।७।।
टि0- 1. 'श्रु0 टी0' में लिखा है कि प्रभाचंद्र आचार्य 'षट् अनायतन' का इस प्रकार निरूपण करते हैं - 'मिथ्याद पनि ज्ञान - चारित्र ये तीन और तीन इनके धारक पुरुष ये षट् अनायतन हैं अथवा असर्वज्ञ, असर्वज्ञ का आयतन, असर्वज्ञ का ज्ञान, असर्वज्ञ के ज्ञान से संयुक्त पुरुष, असर्वज्ञ का अनुष्ठान और असर्वज्ञ के अनुष्ठान से सहित पुरुष- ये छह अनायतन होते हैं । '
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