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अष्ट पाहुड़atara
स्वामी विरचित
आचाय कुन्दकुन्द
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लिखते हैं:वचनिका
की दर्शनपाहुड़
यहाँ प्रथम
अब
樂樂兼崇崇榮樂業業兼差兼勇兼業助兼第崇勇崇明
दोहा
वंदौं श्री अरहंत कुं, मन-वच-तन इकतान। मिथ्या भाव निवारि कै, करै सुदर्शन ज्ञान।। १।।
अर्थ मन-वचन-काय को एकत्रित करके उन श्री अरहंत की वंदना करता हूँ जो मिथ्याभावों का निवारण करके दर्शन और ज्ञान को सम्यक् कर देते हैं।।१।।
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