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| गाथा चित्रावली जो अरिहंत सर्वज्ञ
वह निन्दा के से तो भाषित है तथा
योग्य होता है क्योंकि गणधर देवों के द्वारा सम्यक् प्रकार जिनागम में परिग्रह रहित को ही से गूंथा गया है और सूत्र के अर्थ को निर्दोष साधु कहा गया है।।१६।। जो जानने का ही जिसमें प्रयोजन है ऐसे मुनि पाँच महाव्रत और तीन गुप्तियों सूत्र से मुनि परमार्थ जो मोक्ष उसको से युक्त है वही संयमी होता है, वही साधते हैं।।गाथा १।। जो मनुष्य निर्ग्रन्थ मोक्षमार्ग है और उसी का सूत्र के अर्थ और पद से रहित है वह वन्दन करने योग्य है।।२०।। दूसरा प्रकट मिथ्यादृष्टि है अतः वस्त्र लिंग ११वीं प्रतिमाधारी उन उत्कृष्ट सहित मुनि को हास्य-कौतूहल में भी श्रावकों का कहा गया है जो पाणिपात्र रूप जो आहार है सो नहीं भिक्षावृत्ति से पात्र में भोजन करते हैं करना।।७।। जो संयम से सहित है तथा भाषा समिति रूप बोलते हैं तथा आरम्भ और परिग्रह से विरत है अथवा मौन से प्रवर्तते हैं।।२१।। वही इस सुर, असुर एवं मनुष्य तीसरा लिंग स्त्रियों का है। वे दिन सहित लोक में वन्दना करने के में एक ही बार भोजन करती हैं, योग्य है।।११।। जो साधु सैकड़ों बार-बार नहीं; जो आर्यिका भी हो शक्तियों से संयुक्त होते हुए बाईस तो एक ही वस्त्र धारण करती हैं और परिषहों को सहते हैं और कर्मों की वस्त्र के आवरण सहित ही भोजन क्षय रूप निर्जरा करते हैं वे वंदने करती हैं।।२२।। स्त्रियों के योनि, योग्य हैं।। १२।। दिगम्बर मुद्रा के स्तनों का मध्य, नाभि तथा कांख सिवाय जो अन्य लिंगी हैं अर्थात् आदि स्थानों में सूक्ष्म जीव कहे गये उत्कृ ष्ट श्रावक का वेष धारण हैं अतः उनके प्रव्रज्या अर्थात् करते हैं तथा सम्यक्त्व सहित दर्शन महाव्रत रूप दीक्षा कैसे हो सकती और ज्ञान से संयुक्त हैं और वस्त्र है।।२४।। स्त्रियों में भी जो स्त्री मात्र परिग्रह रखते हैं वे 'इच्छाकार' सम्यग्दर्शन से शुद्ध है वह भी मार्ग से के योग्य कहे गये हैं।।१३।। जो संयुक्त कही गई है। वह घोर चारित्र पुरुष सूत्र में स्थित होता हुआ अर्थात् तीव्र तपश्चरणादि आचरण 'इच्छाकार' शब्द के महान अर्थ को से पापरहित हो जाती है सो जानता है और सम्यक्त्व सहित पापयुक्त नहीं कही जाती।।२५।। श्रावक के भेद रूप प्रतिमा में स्थित स्त्रियों के चित्त की शुद्धि नहीं कही होकर आरम्भादि कर्मों को छोड़ता है जाती, उनका स्वभाव से ही शिथिल वह परलोक में सुखी होता परिणाम होता है इसलिए स्त्रियों में है।।१४।। जिस लिंग में थोड़े-बहुत ध्यान की आशंका नहीं ही करनी
परिग्रह का ग्रहण चाहिए
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