________________
अष्ट पाहुड़storate
स्वामी विरचित
/
आचार्य कुन्दकुन्द
Dod HDoo.
RDog/
PDARY
aaked
Dool
Doo
Amea
चित्तासोहि ण तेसिं ढिल्लं भावं तहा सहावेण। विज्जदि मासा तेसिं इत्थीसु ण संकया झाणं ।। २६ ।।।
हो चित्त की शुद्धि नहीं, है भाव शिथिल स्वभाव से। मासिक धरम से शंकायुत, सो स्त्रियों के ध्यान नहिं ।।२६ ।।
अर्थ
藥業兼崇崇明藥業業業業乐業%崇崇業%崇%崇崇%
उन स्त्रियों के चित्त की शुद्धता नहीं है वैसे ही स्वभाव ही से उनके ढीला भाव है-शिथिल परिणाम है और उनके 'मासा' अर्थात् मास-मास में जो रुधिर का स्राव विद्यमान है उसकी शंका रहती है इससे स्त्रियों के ध्यान नहीं है।
भावार्थ ध्यान होता है सो चित्त शुद्ध हो, द ढ परिणाम हों ओर किसी तरह की शंका न हो तब होता है सो स्त्रियों के ये तीनों ही कारण नहीं हैं तब ध्यान कैसे हो और ध्यान के बिना केवलज्ञान कैसे उत्पन्न हो और केवलज्ञान के बिना मोक्ष नहीं है-इस प्रकार स्त्रियों के मोक्ष नहीं है, श्वेताम्बरादि कहते हैं सो मिथ्या है।।२६।।
崇养崇崇崇崇崇崇崇崇勇攀藤勇攀事業樂業禁帶男
e उत्थानिका| O
आगे 'सूत्रपाहुड' को समाप्त करते हैं सो सामान्य से सुख का कारण
कहते हैं :गाहेण अप्पगाहा समुद्दसलिले सचेलअत्थेण । इच्छा जाहु णियत्ता ताहं णियत्ताई सव्वदुक्खाई।। २७।। निज वस्त्र हेतु समुद्रजलवत्, ग्राह्य से ग्रहें अल्प मुनि। इच्छाएँ निव त हुईं जिनकी, दुःख सब निव त हुए ।।२७ ।।
टि0-1. म0 व श्रु0 टी0' में यहाँ आए हुए ‘ण संकया झाणं' पाठ के स्थान पर 'ण संकया झाणं'
पाठ देकर अर्थ किया है कि 'स्त्र्यिों के निर्भयतापूर्वक ध्यान नहीं होता।' 崇明崇明崇明聽聽聽聽騰騰崇勇兼業助兼業