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________________ गाथा - १४ 1 हजार । मालिक कहता है, बारह हजार और अन्य कहते हैं बीस हजार! यह तो बाहर के धूल के ठाठ हैं। इसे जरा लगे, दिमाग हो, खड़े हों ऐसे ध्यान रखे । मुँह - मुँह उस समय चिमनभाई को काला हो जाता था । आहा... हा...! यहाँ दोपहर में व्याख्यान में आते । अभी मुँह है, ऐसा मुँह तब नहीं था । मुँह जरा ऐसा हो जाता, काला और लाल, चढ़ता खून और खड़ा रहना, वहाँ कहाँ छतरी रखकर खड़ा रहे ? परन्तु वह कश का परिणाम हुआ, इसलिए यह काम हुआ ऐसा नहीं है। हाय.... ! हाँ ! कठिन बात, भाई ! समझ में आया ? आहा....हा...! अद्भुत श्लोक है, बहुत संक्षिप्त... संक्षिप्त... संक्षिप्त... है। समझ में आया ? ९८ कहते हैं... बीच में तो इन्होंने बहुत डाला है, हाँ ! यह मुनिव्रत, श्रावक के व्रत का राग, यह तप का राग, भक्ति का राग, पठन-पाठन का राग और मन्त्रों के जप का राग यह सब राग बंध का कारण है। इस ओर है, सत्तर पृष्ठ पर । समझ में आया? ऐसा यह थोड़ा ठीक लिखते हैं । यह.... अभी से नहीं करते ? सब कह दिया । मोक्ष के कारणरूप भाव एक वीतरागभाव है, शुद्धोपयोग है। निश्चयरत्नत्रय एक ही मोक्ष का कारण है। भगवान आत्मा अन्तर के शुद्धस्वभाव की श्रद्धा, ज्ञान और रमणता, निर्विकल्पता, वीतरागता, शुद्धता के परिणाम अपने शुद्धस्वरूप को अवलम्बन कर हुए, वह एक ही संवर और निर्जरारूप है, और वह स्वयं एक ही मुक्ति का उपाय है। समझ में आया? फिर अन्त में (लिया है) यह रत्नत्रयधर्म एकदेश हो तो भी बंध का कारण नहीं है। वह कहता है न ? रत्नत्रय से बंध भी होता है और मुक्ति भी होती है, उसे अनेकान्त करना है । ऐसे का ऐसा, कौन जाने जगे हैं ? है ? वह विद्रोही था न ? ‘जोगाखुमाण' क्या कहलाता है वह ? 'जोगीदास खुमाण' दरबार का विद्रोही था न ? भावनगर का... फिर भावनगर में कोई मर गया । तख्तसिंहजी (की) उपस्थिति थी । वह स्वयं मातम में शोक मनाने आया, हाँ ! राजा का पक्का विद्रोही, ऐसे सिर पर थोड़ा कपड़ा रखे न ?.... तो आना चाहिए न ? वह तो राजा है, राजा ऐसे बैठे थे, वे बोले, ऐ... यह जोगीदास.... दूसरे कहें पकड़ो। तख्तसिंह कहे अरे ! अपना मेहमान है। अभी दूसरा होगा ? अभी तो अपना मेहमान है, विद्रोही, हाँ ! राजा का पक्का विद्रोही परन्तु यहाँ अभी क्यों आया है? आया है ऐसा नहीं बोले, हाँ ! दरबार स्वयं, अभी क्यों आये
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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