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योगसार प्रवचन (भाग-१)
उत्तर – माने उसे ऐसा कहा। वे ऐसा कहते हैं, परजीव का कर नहीं सकता ऐसा न माने.... कर सकता है – ऐसा न माने, वह अज्ञानी है – ऐसा कहते हैं । यहाँ कहते हैं, परजीव को सुखी-दु:खी कर सकता हूँ – यह मान्यता मूढ़ और अज्ञानी की है। आत्मा परजीव को सुखी-दुःखी कर नहीं सकता। किसका कौन करे? कितने प्रतिशत? मूढ़ ! सौ में सौ प्रतिशत।
भगवान आत्मा पर का क्या करे? स्वतन्त्र स्त्री, पुत्र के आयुष्य को दे सकता है ? उनका जीवन बढ़ा सकता है, उन्हें सुख-दुःख दे सकता है ? उनके संयोग प्रमाण संयोग पूर्व के कारण आते हैं। कल्पना से मानता है कि मुझे सुख-दुःख होता है। दूसरा कोई दे सके ऐसी तीन काल में ताकत नहीं है। कहो, समझ में आया? सभी जीव अपने-अपने पाप-पुण्य कर्म के उदय से दुःखी अथवा सुखी होते हैं। ज्ञानी जीव इस अहंकार से दूर रहता है। धर्मात्मा पर का कार्य मैं कर सकता हूँ – ऐसा नहीं मानता। मैं तो ज्ञातादृष्टा हूँ, मेरे ज्ञान-दर्शन और आनन्द की क्रिया का करनेवाला हूँ। राग भी मेरा काम नहीं है तो पर के कार्य (मेरे कहाँ से होंगे)? समझ में आया?
वृहद् सामायिक में कहा है - जब मरण आ जाता है तब न वैद्य, न पुत्र, न ब्राह्मण, न इन्द्र, न अपनी स्त्री, न माता, न नौकर, न राजा - कोई भी बचा नहीं सकते हैं। आयु पूर्ण हुआ वहाँ भगवान आत्मा शरणभूत तो अन्दर आत्मा आनन्दकन्द है। बाहर में कोई शरणभूत नहीं है। बँगला-बँगला ठीक हो, पैसा-वैसा अच्छा हो, तो कुछ होगा या नहीं? रतिभाई! हैं... प्रभुभाई! क्या होगा? ऐसा विचार करके सज्जनों को आत्मा का काम कर लेना योग्य है.... है अन्दर में, हाँ! कार्य निजं कार्यभायें' वृहद सामायिक में पाठ है। बडी सामायिक में पाठ है न? आत्मार्थी को अपना काम करना. मेरा काम (करूँ)।
सज्जनों को आत्मा का काम कर लेना योग्य है, विलम्ब नहीं करना चाहिए।ओहो... ! यह आत्मा... मनुष्य देह मिला, पाँच इन्द्रियाँ मिली, सुनने को मिला, तब आत्मा के स्वभाव का कार्य कर लेना चाहिए। देर नहीं लगानी चाहिए। अमृतचन्द्राचार्यदेव ने प्रवचनसार में – इस क्षण आज ही करना - ऐसा लिखा है। पीछे