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योगसार प्रवचन ( भाग - १ )
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किसकी लगायी इसमें? ए... मोहनभाई ! तीन-तीन वर्ष का लड़का मर गया। वे गृहस्थ लोग इसलिए छोड़ो रोना ! किसका रोना-धोना ? वह तो आत्मा है, अब यहाँ से चला गया, इतने दिन यहाँ शरीर में रहा । अब अन्यत्र गया ? वहाँ कहाँ आत्मा नष्ट हो ऐसा है । आहा...हा... ! समझ में आया ?
यह धर्मी के जीवन में क्षण-क्षण में वैराग्य होता है, ऐसा कहते हैं । आहा...हा...! ऐसे प्रसंग में हो, परिवार में हो फिर भी मेरा ज्ञान... मेरा ज्ञान... उस क्षण मैं तो जाननेदेखनेवाला वह मेरा ज्ञान, बाकी तो वह (पुत्र) मेरा नहीं, राग मेरा नहीं, कोई मेरा नहीं । समझ में आया ? सही समय पर काम आये या नहीं ? बातें करे ( काम न आवे ) परन्तु जब मरण हो घर में बीस वर्ष का (लड़का ) मर गया हो, फिर पता पड़े.... हैं ? अरे ! भाई गया, कौन मर जाता है ? आत्मा मरता होगा ? शरीर मरता होगा ? यह तो मिट्टी है, यह तो पर्याय-अवस्था बदली दूसरी हो गयी, राख की हो गयी। यहाँ थी (अब) राख की हो गयी। मरे कौन ?
आत्मा त्रिकाली सनातन शुद्ध चैतन्य है, उसके भान में कहते हैं। देखो ! समझ में आया ? देखो! यह अन्तिम आया 'गुणीजन जड़सुख छे जी जंजाल' यह कल्पना की है कि इसमें सुख है और इस लड़के में सुख है, पैसे में सुख है; धूल है मूढ़ ! ' गुणीजन जड़ सुख छे जी जंजाल, आनन्दघन आप छे जी ' मैं आनन्दघन आत्मा हूँ, आनन्द का धर आत्मा। यह सही समय पर इसकी कसौटी होती है । निहालभाई ! यह बीस वर्ष का मर जाये और स्त्री छोड़कर बैठ जाये, और दूसरे रोने लगें.... हाय... हाय ... ! क्या है परन्तु ? किसकी लगा रखी है ? श्मशान है यहाँ ? यहाँ तो आत्मा है । आहा... हा...!
भगवान आत्मा ज्ञान की मूर्ति है - ऐसा जहाँ अन्तरभान हुआ, कहते हैं कि वह सर्वत्र ज्ञान ही देखता है। ज्ञान अर्थात् यहाँ आत्मा । समझ में आया ? आहा... हा... ! एक अद्वैत आत्मा का ही अनुभव आ रहा है, अनुभव के समय में तो अपने मैं ही लीन होता है। अनुभव के काल में हमें जाननेवाला देख - ऐसा कहते हैं। अनुभव की माता भावना है। ऐसा कहकर बहुत लम्बा किया है, दृष्टान्त दिया है, जरा ! ठीक कहा है। जैसे कोई खेत में जाये.... यह चने पकते हैं या नहीं ? चने... खेत में चने पकते हैं न? चने,