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योगसार प्रवचन (भाग-१)
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निश्चय चारित्र ही मोक्ष का कारण है वउतउसंजमुसील जिय इय सव्वइ ववहारू। मोक्खह कारण एक्क मुणि तो तइलोयहु सारू॥३३॥
व्रत-तप-संयम-शील सब, ये केवल व्यवहार।
जीव एक शिव हेतु है, तीन लोक का सार॥३३॥ अन्वयार्थ – (जिय) हे जीव! (वउतउसंजमुसील इव सव्वइ ववहारू) व्रत, तप, संयम, शील ये सब व्यवहार चारित्र है (मोक्खह कारण एक्कु मुनि) मोक्ष का कारण एक निश्चय चारित्र को जानो (जो तइलोयहु सारू) जो तीन लोक में सार वस्तु है।
३३। निश्चय चारित्र ही मोक्ष का कारण है। लो! आत्मा के आश्रय से वीतरागता प्रगट हो, वह एक ही मोक्ष का कारण है। व्यवहारचारित्र बन्ध का कारण है। अभी यह बड़ा विवाद, झगड़ा (चलता है)। दूसरे कहते हैं, वह व्यवहारचारित्र पहला मोक्ष का मार्ग है। पञ्च महाव्रत.... कुन्दकुन्दाचार्य ने किसलिए पालन किये थे? ऐसा कहते हैं। पालन कहाँ किये थे? थे, निमित्तरूप थे, उन्हें बन्ध का कारण जानकर उन्हें हेय जानते थे। वास्तव में तो आत्मा वउतउ संजमुसील जिय इय सव्वइ ववहारु' लो! यह सब व्यवहार है। 'सव्वइ ववहारु मोक्खह कारण एक्क मुणि जो तइलोयहु सारु' देखो, यह व्यवहार, मोक्ष का कारण नहीं है - ऐसा सिद्ध करते हैं। इसमें है न? शब्द है?
हे जीव! व्रत.... पञ्च महाव्रत, बारह व्रत.... तप.... प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्त्य, सज्झाय इत्यादि । सज्झाय आदि सब, हाँ! संयम.... छह काय जीव को नहीं मारना आदि। शील.... कषाय मन्द अथवा शरीर का ब्रह्मचर्य, यह सब व्यवहारचारित्र है। ऐसा कहकर इसे मोक्ष का कारण नहीं कहा। एक व्यवहार है, ऐसा कहा। यह व्यवहारचारित्र है – ऐसा कहा।