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योगसार प्रवचन (भाग-१)
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समानता के अनन्त होंगे। एक भी भव के भाव की भावना करता है, उसे अनन्त निगोद के भव उसके कपाल में पड़े हैं। भले ही एक दो भव हों परन्तु हमें तो दुनिया का कल्याण (करना है)। यहाँ वह शब्द है न? जगत् का कल्याण करना... नहीं? यह ठीक है (ऐसा) कहते हैं। समझ में आया? कौन करे? जगत् का करे कौन? कल्याण करे कौन? विकल्प करे कौन? वस्तु में विकल्प नहीं है। समझ में आया? आया वह तो अनात्मस्वरूप नुकसान कारक है, उससे स्व को लाभ माने, वह आत्मा को जानता नहीं है। समझ में आया?
ऐसा अप्पा अणुदिणु मुणहु किसी समय में दूसरा आना नहीं चाहिए – ऐसा कहते हैं। ऐसा भगवान आत्मा अन्दर में निर्विकल्प श्रद्धा-ज्ञान और शान्ति से अनुभवना, बस ! यही आत्मा का स्वरूप और मोक्ष के लाभ का हेतु है, बाकी सब बातें हैं। समझ में आया? वे आते हैं न. दश प्रकार के धर्म? रात्रि में क्षमा का विचार आया... त्याग धर्म नहीं आता? त्याग आवे, उसमें दूसरा लिखे, उसे पुस्तक देना, ऐसा देना... अरे...! भाई सुन न ! यह तो विकल्प की बातें हैं। ए...ई... छोटाभाई ! दश प्रकार के धर्म में आता है या नहीं? दूसरे को पुस्तक देना, दूसरे को यह देना, उसे शिक्षा देना, उसे यह देना, यह महा ज्ञान का आराधना है। अरे... ! सुन न! यह तो विकल्प की बातें हैं। समझ में आया? यह तो पीछे अन्तर में ज्ञानानन्द की एकाग्रता की भावना की उग्रता वर्तती है. उसके निमित्त द्वारा बतलाया है। यह विकल्प द्वारा बतलाया है। देखो! इसे राग का त्याग वर्तता है, और यह त्याग (वर्तता है) – ऐसा करके अन्दर में स्थिरता क्या है, उसे बतलाया है। वह स्वयं चीज नहीं है, समझ में आया? आता है, शास्त्र में ऐसा कथन आता है, हाँ!
___ यह बात है, भगवान आत्मा शुद्ध चैतन्यमूर्ति बुद्ध जिन अकेला पूर्ण ज्ञानस्वभाव है, उसका बारम्बार – हमेशा.... फिर बारम्बार अर्थात् एक बार और फिर... ऐसा बारम्बार नहीं। एक धारावाही ऐसे भगवान का अनुभव करना। आहा...हा...! बीच में विकल्प हो, उसे अनुमोदित नहीं करना कि यह मुझे हितकारी है। आहा...हा...! समझ में आया?
जइ पाहउ सिवलाहु लो! जइ पाहउ सिवलाहु शिव के लाभ को चाहता हो तो