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योगसार प्रवचन (भाग-१)
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शुद्ध सचेतन बुद्ध जिन, केवलज्ञान स्वभाव।
सो आतम जानों सदा, यदि चाहो शिवभाव॥ अन्वयार्थ - (जइ सिवलाहु चाहउ) यदि मोक्ष का लाभ चाहते हो तो (अणुदिणु सो अप्पा मुणहु ) रात-दिन उस आत्मा का मनन करो जो (सुद्ध) शुद्ध वीतराग निरंजन कर्म रहित हैं ( सच्चेयणु) चेतना गुणधारी है या ज्ञान चेतनामय है (बुद्ध) जो स्वयं बुद्ध है (जिणु ) जो संसार विजयी जिनेन्द्र है (केवलणाणसहाउ) व जो केवलज्ञान या पूर्ण निरावरण ज्ञानस्वभाव का धारी है।
२६ । शुद्ध आत्मा का मनन ही मोक्षमार्ग है। भगवान आत्मा को, पूर्णानन्द के नाथ को अन्दर निर्विकल्परूप से अनुभव करना, यह एक ही मोक्ष का मार्ग है। समझ में आया? कहते हैं कि शुद्ध आत्मा.... समझ में आया? यह पवित्र आत्मा अन्दर है, यह शरीर, वाणी, मन को मिट्टी-जड़ है, यह तो धूल है। अन्दर आठ कर्म के रजकण हैं, वे मिट्टी-धूल है और आत्मा में पुण्य और पाप के दो भाव होते हैं, वह मलिन / विकार है। उनसे रहित भगवान अन्दर विराजमान आत्मा, वह तो सच्चिदानन्द आनन्दकन्द सिद्धसमान है। समझ में आया? आहा...हा... ! ऐसे शुद्ध भगवान आत्मा की एकाग्रता-मनन, वही मोक्ष का मार्ग है; दूसरा कोई मोक्ष का मार्ग नहीं है। आहा...हा... ! समझ में आया? देखो!
सधु सच्चेयणु बुधु जिणु केवलणाणसहाउ।
सो अप्पा अणुदिणु मुणहु जइ चाहउ सिवलाहु॥२६॥
अरे! भगवान आत्मा ! यदि मोक्ष का लाभ चाहता हो, यदि परमानन्दरूपी मोक्ष की दशा चाहते हो तो रात-दिन इस आत्मा का मनन करो... आहा...हा...! अरे! यह जबावदारी.... शर्त इतनी है कि यदि तुझे पूर्णानन्द की प्राप्तिरूपी मोक्ष की इच्छा हो तो.... शर्त इतनी, हैं ? पुण्य चाहिए हो, पैसा चाहिए हो, स्वर्ग चाहिए हो तो उसके लिए यह बात नहीं है। वह तो भटकनेवाले अनन्त काल से भटकते हैं । आहा...हा...! कहते हैं.... गाथा बहुत उत्कृष्ट है, हाँ! जरा एक-एक शब्द अच्छा उत्कृष्ट है।