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योगसार प्रवचन (भाग-१)
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यह संयोग मिला। अरे...! हमारा काम कम रहा, हमें स्वरूप में स्थिरता करनी चाहिए, उतनी नहीं हो सकी और यह उसका फल आया। समझ में आया? ऐसा उल्टा खेद करते हैं, इन्द्रपद देखकर खेद करते हैं। अरे...! यह फल आया? अरे...! हमारा आत्मा सच्चिदानन्दप्रभु पूर्ण केवलज्ञान की प्राप्ति करे - ऐसी ताकतवाला, उसे यह संयोग का फल मिला! अरे...! हमने काम बाकी रखा. हमारा काम अधरा रह गया, स्वरूप में स्थिरता होनी चाहिए उतनी नहीं हुई; इसलिए राग बाकी रह गया, उसका यह फल है। फिर स्मरण करता है कि भगवान के मन्दिर कहाँ हैं? देव कहते हैं पधारो अन्नदाता! भगवान की प्रतिमाएँ हैं, मन्दिर है, उनकी पूजा करो - आचार है, व्यवहार है, भगवान की पूजा करो। समझ में आया?
यहाँ कहते हैं कि जिसे संसार का भय लगा है, यह निर्णय करना चाहिए, उसे कहता हूँ (- ऐसा) कहते हैं। समझ में आया? 'संसारहं भयभीयाहं' संसार से 'भयभीयाहं' भय रखनेवाले।आहा...हा...! एक बार ऐसा फाँसी पर चढ़ाने का निश्चित करे न तो कँपकँपी छट जाये। हआ था न? राजकोट में। ढीला पड़ गया. ढीला. हाँ! वहाँ हम गये थे। जेल में एक को फाँसी चढ़ाने का था, बाईस वर्ष का युवक। एक लड़की को मार डाला था, फाँसी का नक्की हो गया था, जेलर साथ में, एक हमारे साथ सब बड़े (लोग) थे। उन लोगों को दर्शन करने का भाव है (ऐसा कहा) इसलिए हम वहाँ गये थे। सब साथ गये थे। जिसने खून किया, उसे बाहर नहीं निकालते, बाईस वर्ष का युवा इसलिए उसका अमलदार साथ आया, महाराज! बेचारा पैर लगा ऐसा करके, परन्तु ऐसा ढीला हो गया। निश्चित हो गया था बाईस वर्ष का युवा, फाँसी का निश्चित हो गया था। हाय... हाय...! ऐसा नीचे ढाला जाली में, उसे बाहर निकालते नहीं। भाई ! तेरा नाम क्या? क्या किया था? 'बटुक' बाईस वर्ष का युवा । फाँसी का निश्चित हो गया, फिर बारह महीने में फाँसी दी, बारह महीने में दे दी। फाँसी दी, बारह महीने में फाँसी दी।आहा...हा...! एक बार फाँसी पर चढ़ने का यह त्रास है। वे लोग कहते थे कि उस कमरे में हम फाँसी पर चढ़ाते हैं, उन्होंने कमरा बताया। अमलदार लोग साथ आये, महाराज आये हैं, सबको पैर लगना हो, दर्शन करने आवे न ! उस जगह ले गये, दो हाथ पीछे बाँधे फिर दो कड़े थे, वहाँ सूत की डोरियाँ तीन मक्खन में डुबोकर रखे, तीन दिन डुबोकर रखे, इसलिए झट