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योगसार प्रवचन ( भाग - १ )
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मुमुक्षु - पंचम काल में भी ऐसा है ?
उत्तर - पंचम काल में क्या.... काल में क्या आत्मा ही नहीं है, काल में आत्मा नहीं है, आत्मा में काल नहीं है । यह दो भाई 'वीरवाणी' लिखते थे। समझ में आया ? यह सिद्धान्त चलता है न एकदम ! आहा... हा...!
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अणु म करहु वियप्पु भगवान ! आहा... हा... ! कौन कहते हैं ? सर्वज्ञ परमेश्वर कहते हैं। यहाँ मुनि कहते हैं। समझ में आया ? मुनिराज दिगम्बर सन्त योगीन्द्रदेव जंगलवासी, जिन्हें वस्त्र का एक धागा भी नहीं था.... जंगल में रहते थे । अकेले वस्त्र का धागा (नहीं था ) – ऐसा नहीं । एक विकल्प की वृत्ति का तन्तु भी मुझमें नहीं - ऐसे वे थे। समझ में आया ? आहा... हा... ! यह कहते हैं, इउ जाणेविणु जोइआ इस स्वरूप में एकाग्र करनेवाला जीव ! इस एकाग्रता के अतिरिक्त विकल्प है, चाहे जैसा हो । पंच महाव्रत के हों, व्यवहार समिति, गुप्ति के हों, व्यवहार पर को समझाने के हों, शास्त्र पढ़ने के हों.... अब पढ़-पढ़कर तुझे कब तक पढ़ना है - ऐसा कहते हैं। ए... प्रवीणभाई ! पढ़कर क्या पढ़ते रहना है ? कि वह (भगवान) पढ़ना है अन्दर ?
यहाँ तो कहते हैं कि वह पढ़े हुए ज्ञान से पकड़ में आवे ऐसा नहीं, ऐसा वह है। ए.... निहालभाई ! अरे..... वह शास्त्र के जाने हुए ज्ञान से पकड़ में आवे ऐसा नहीं है । शास्त्र और शास्त्र की ओर का ज्ञान वह परावलम्बी ज्ञान है; छोड़ उसकी महिमा ! उसके बिना आत्मा का पता नहीं लगता - ऐसा कहते हैं। आहा... हा... ! यहाँ तो विकल्प की बात की, परन्तु वह विकल्प है। भेद है, पर तरफ का ज्ञान वह आत्मा के स्वभाव का ज्ञान नहीं है। समझ में आया? आहा...हा... ! ऊँचे हो जाओ, नपुंसक हो तो नहीं होता, नपुंसक को उत्साह नहीं चढ़ता। समझ में आया ?
माता देवकी, श्रीकृष्ण वहाँ रहे थे न ? दूसरी जगह रहे थे ? ग्वाले के यहाँ । जहाँ माता को देखकर प्रेम आया और माता के स्तन में से दूध आया, सहज ही दूध आया, ऐसा जन्म दिया है न इन्होंने ! यह क्या ? कहते हैं, ग्वाले के यहाँ जन्म दिया और यह मेरी माता लगती है, इसे यह दूध क्या आया ? यह मेरी माता लगती है । ग्वाले के वहाँ तो मुझे रखा लगता है । वासुदेव थे न ? महा विचक्षण बुद्धिवाले थे । देवकी को दूध क्यों आया ? यह