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गाथा - २२
✰✰✰ मैं ही परमात्मा हूँ
जे परमप्पा सो जि हउं जे हउं सो परमप्पु ।
इउ जाणेविणु जाइआ अण्णु मरहु वियप्पु ॥ २२ ॥
जो परमात्मा सो हि मैं, जो मैं सो परमात्म |
ऐसा जानके योगीजन! तज विकल्प बहिरात्म ॥
अन्वयार्थ – ( जोइया) हे योगी! (जे परमप्पा सो जि हउं ) जो परमात्मा है वही मैं हूँ (हे हउं सो परमप्पु ) तथा जो मैं हूँ सो ही परमात्मा है (इउ जाणेविणु ) ऐसा कर (अणु वियप म करहु ) और कुछ भी विकल्प मत कर।
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२२ । अब स्वयं ही आया, उस (२१ गाथा में) जिन सो हि परमात्मा (कहकर ) ऐसी जरा तुलना की थी। अब मैं ही परमात्मा हूँ, ऐसा अनुभव कर, मैं ही परमात्मा हूँ, वीतराग सर्वज्ञदेव की ध्वनि में, त्रिलोकनाथ परमात्मा सौ इन्द्रों की उपस्थिति में समवसरण में लाखों-करोड़ों देवों की हाजिरी में ऐसा फरमाते थे कि तू परमात्मा है ऐसा निर्णय कर ! तू परमात्मा है ऐसा निर्णय कर, ओ...हो...हो... ! भगवान ! परन्तु आप परमात्मा हो, इतना तो निर्णय करने दो ! – कि यह परमात्मा हम हैं - ऐसा निर्णय कब होगा ? कि परमात्मा है - ऐसा अनुभव होगा, तत्पश्चात् यह परमात्मा है, ऐसा व्यवहार तुझे निर्णित होगा । निश्चय का निर्णय हुए बिना व्यवहार का निर्णय नहीं होगा । आहा... हा... ! देखो, बदली बात !
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जे परमप्पा सो जि हउं जे हउं सो परमप्पु ।
इउ जाणेविणु जाइआ अण्णु मरहु वियप्पु ॥ २२ ॥ आहा...हा... ! देखो, यह ! कहते हैं कि भाई ! हे धर्मी जीव ! जो परमात्मा है वही मैं हूँ.... परमात्मा को विकल्प नहीं, परमात्मा बोलते नहीं, परमात्मा बोलने में आते नहीं मैं आत्मा परमात्मा हूँ - ऐसा अनुभव दृष्टि में ले । आहा....हा... ! यहाँ तो विशेष
ऐसा