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मैं कौन हूँ ?
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विद्रोह का कारण बन रहे हैं। घर टूट रहे हैं और समाज बिखर रहा है और उनमें अनेक विकृतियाँ उत्पन्न हो रही हैं।
ऐसी विषम स्थिति में भी यदि हमने स्याद्वाद की शरण नहीं ली, सापेक्ष दृष्टिकोण को नहीं अपनाया, दूसरे के दृष्टिकोण को समझने का प्रयास नहीं किया; तो स्थिति इतनी भयानक हो सकती है कि हम जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकते।
विज्ञान के विकास ने आज क्षेत्र और काल की दूरी को समाप्त सा ही कर दिया है। विगत काल में हम जहाँ वर्षों में भी नहीं पहुँच सकते थे, आज वहाँ घंटों में पहुँच जाते हैं। एक दिन वह था कि जब हम सौ-दो सौ मीटर दूर बैठे व्यक्ति से भी बात नहीं कर सकते थे; आज हजारों किलोमीटर दूर बैठे व्यक्ति से उसीप्रकार बात करते हैं, जिसप्रकार सामने बैठे व्यक्ति से कर रहे हों।
इसप्रकार आज की दुनिया बहुत छोटी हो गई है और रहन-सहन और विचारों की विभिन्नता का क्षेत्र बहुत विस्तृत हो गया है।
विभिन्न रीति-रिवाज और विभिन्न विचारोंवाले भूलोक में हम सभी को मिल-जुलकर एकसाथ ही रहना है और उसके लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि हमारे जीवन में सहिष्णुता का विकास हो; क्योंकि उसके बिना सह-अस्तित्व संभव नहीं है।
यदि हमने एक-दूसरे के अस्तित्व और विचारों को चुनौती दिये बिना रहना नहीं सीखा तो हमें निरंतर अस्तित्व के संघर्ष में ही जुटे रहना होगा।
यह तो आप जानते ही हैं कि संघर्ष अशान्ति का कारण है और उसमें हिंसा अनिवार्य है। हिंसा प्रतिहिंसा को जन्म देती है। इसप्रकार हिंसा और प्रतिहिंसा का कभी समाप्त न होनेवाला दुष्चक्र चलता रहता है।
यदि हम शान्ति से रहना चाहते हैं तो हमें दूसरों के अस्तित्व और
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अनेकान्त और स्याद्वाद
विचारों के प्रति सहनशील बनना होगा। सहनशीलता सहिष्णुता का ही पर्यायवाची शब्द है।
यदि हम इस लोक में सुख-शान्ति से रहना चाहते हैं तो हमें एक ही वस्तु को, एक ही स्थिति को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखना सीखना होगा, तदनुसार अपने जीवन को ढालना होगा, दूसरे के विचारों को प्रति सहिष्णु बनना होगा; क्योंकि सुख-शान्ति से रहने का एक मात्र यही उपाय है।
एक ही वस्तु को अनेक दृष्टिकोणों से देखने का नाम ही स्याद्वाद है और परिवार से लेकर सम्पूर्ण विश्व तक फैली अनन्त समस्याओं का समाधान भी इस स्याद्वादी दृष्टिकोण में समाहित है।
इसप्रकार हम देखते हैं कि अनेकान्त और स्याद्वाद जैनदर्शन के ऐसे सिद्धान्त हैं कि जिनको समझे बिना जैनदर्शन को नहीं समझा जा सकता ।
इनकी सही समझ से हमें एक-दूसरे को समझने में भी सहयोग मिलता है । अत: जैनदर्शन का मर्म जानने के लिए और जीवन में आनेवाले निरन्तर संघर्षों से बचने के लिए हमें इन विषयों को गहराई से समझने का प्रयास करना चाहिए।
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सम्पूर्ण जगत इन सर्वहितकारी सिद्धान्तों को गहराई से समझ कर, जीवन में अपना कर सहज सुख-शान्ति को प्राप्त हो ह्न इस मंगल भावना साथ विराम लेता हूँ ।
स्त्री-पुत्र, मकान-जायदाद आदि की उपस्थिति आत्मज्ञान में बाधक नहीं है। इनकी उपस्थिति में आत्मज्ञान हो जाता है, पर जबतक ज्ञान पर को ज्ञेय बनाता रहेगा, तबतक आत्मज्ञान सम्भव | नहीं है। ज्ञान (आत्मा) का ज्ञान करने के लिए ज्ञान ( प्रकट ज्ञान पर्याय) को ज्ञान (आत्मा) में लगाना होगा ।
- डॉ. भारिल्ल की डायरी से