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शाश्वत तीर्थधाम सम्मेदशिखर
जो ध्यान केवलज्ञान का साधन था, वह आज नवधनाड्यों के तनाव को कम कर रहा है – ध्यान का इससे बड़ा परिहास और क्या होगा ?
आज ध्यान का उपयोग दवा के रूप में किया जा रहा है, शारीरिक स्वास्थ्य के लिए किया जा रहा है। जिस शरीर में वैराग्य उत्पन्न करने के लिए, एकत्व तोड़ने के लिए प्रतिदिन पाठ की जानेवाली बारह भावनाओं में से आरम्भ की छह भावनाएँ समर्पित हैं; जिस शरीर की अनित्यता, अशरणता, असारता, भिन्नता और अशुचिता का चिन्तन ध्यान की सिद्धि के लिए धर्मात्माजन निरन्तर करते हैं; आज हम उसी शरीर की मजबूती के लिए ध्यान जैसे पवित्र कार्य का उपयोग कर रहे हैं।
जो ध्यान विकृत आत्मा की चिकित्सा के लिए था, वह आज शरीर की चिकित्सा में लग गया है। इसे हम कलियुग का दोष कहें या हमारे चिरपरिचित अज्ञान का दुष्परिणाम ? जो भी हो, पर इस विषय को ऐसे ही छोड़ देना उचित नहीं है, अपितु इस पर गम्भीरता से विचार किया जाना आवश्यक है। __ आज हमारे इन परमपवित्र तीर्थों को भी पिकनिक स्पॉट में बदलने के प्रयास चालू हैं; इन वनप्रान्तों को भी आधुनिकतम नगरों के रूप में परिवर्तित करने के प्रयास चालू हैं या फिर इसप्रकार के नये तीर्थों का विकास किया जा रहा है; जहाँ सब प्रकार की सुख-सुविधायें उपलब्ध हों; पर यह कोई नहीं सोचता कि इन्हें आधुनिकतम सुविधा से युक्त कर देने से इनका मूल स्वरूप ही समाप्त हो जायेगा। यहाँ भी टी.वी. और वी.सी.आर. के प्रवेश से यहाँ की भी शान्ति भंग हो जावेगी।
यदि ऐसा हो गया तो फिर ये स्थान भी आत्मसाधना के स्थान न रहकर अन्य स्थानों के समान साधारण स्थान होकर रह जायेंगे।
इनका मौलिक स्वरूप कायम रखने की महती आवश्यकता है।