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शाश्वत तीर्थधाम सम्मेदशिखर विशेष है, जो तीर्थंकरों के पंचकल्याणकों से संबंधित हैं; क्योंकि तीर्थंकर ही तो जैनदर्शन और धर्म के सूत्रधार हैं। कल्याणक तीर्थों में भी वे तीर्थ अधिक महत्त्व रखते हैं, जो तीर्थंकरों की निर्वाणभूमि हैं; क्योंकि निर्वाण ही तो अन्तिम लक्ष्य है, परम साध्य है ।
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सम्मेदशिखर वर्तमान चौबीसी के बीस तीर्थंकरों की निर्वाणभूमि होने से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सर्वश्रेष्ठ तीर्थराज है ।
तीर्थंकरों की निर्वाणभूमियों की चर्चा करते हुए मंगलाष्टक में एक छन्द आता है, जो इसप्रकार है
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" कैलासे वृषभस्य निवृति मही वीरस्य पावापुरे । चंपायां वसुपूज्य सज्जिनपतेः सम्मेद शैलेऽर्हताम् ।। शेषाणामपि चोर्जयन्तशिखरे नेमीश्वरस्यार्हतो । निर्वाणावनय: प्रसिद्धविभवाः कुर्वन्तु ते मंगलम् ॥ निर्वाणकाण्ड (प्राकृत) में उक्त चर्चा इसप्रकार की गई है -
"अट्ठावयम्मि उसहो, चंपाए वासुपूज्य जिणणाहो । उज्जंते णेमि जिणो पावाए णिव्वुदो महावीरो ।। वीसं तु जिणवरिंदा अमरासुर वंदिदा धुदकिलेसा । सम्मेदे गिरिसिहरे णिव्वाण गया णमो तेसिं । "
उक्त प्राकृत भाषा के निर्वाणकाण्ड के उक्त छन्द का निर्वाणकाण्ड भाषा में हिन्दी छन्दानुवाद इसप्रकार किया गया है
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( चौपाई )
"अष्टापद आदीश्वर स्वामि, वासुपूज्य चम्पापुरि नामि । नेमिनाथ स्वामी गिरनार, वंदौ भाव भगति उरधार ।। चरम तीर्थंकर चरम शरीर, पावापुर स्वामी महावीर । शिखर सम्मेदजिनेश्वर बीस, भावसहित वंदो निशदीश ।। "