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प्रकाशकीय
( तेइसवाँ संस्करण)
'शाकाहार : जैनदर्शन के परिप्रेक्ष्य में' का यह तेइसवाँ संस्करण प्रकाशित करते हुए हम अत्यन्त गौरव का अनुभव कर रहे हैं। हिन्दी में अब तक बाईस संस्करणों के माध्यम से 2 लाख 41 हजार 200 प्रतियाँ, गुजराती में सात संस्करणों के माध्यम से 41 हजार, मराठी में चार संस्करणों के माध्यम से 16 हजार तथा अंग्रेजी में दो संस्करण के माध्यम से 10 हजार - इसप्रकार चारों भाषाओं में कुल 3 लाख 08 हजार 200 प्रतियों की बिक्री अपने आप में गौरवपूर्ण है।
वर्ष 1991 में जैनसमाज की प्रमुख सामाजिक संस्थाओं ने उस वर्ष को शाकाहार वर्ष के रूप में घोषित कर अनेक कार्यक्रमों का संचालन किया था । अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन ने भी 'शाकाहार रथ' का प्रवर्तन कर देश भर में शाकाहार का अलख जगाया और शाकाहार - श्रावकाचार वर्ष मनाया । 'शाकाहार रथ' के प्रवर्तन हेतु प्रचार-प्रसार की दृष्टि से फैडरेशन के पदाधिकारियों ने डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल से विशेष अनुग्रहपूर्वक प्रस्तुत कृति का निर्माण कराया; फलतः तब से आजतक इस लघु कृति के माध्यम से शाकाहार का जन-जन में प्रचार-प्रसार हो रहा है।
प्रस्तुत प्रकाशन हेतु डॉ. भारिल्लजी का जितना उपकार माना जाए कम है। उन्होंने अत्यन्त सरल व सरस शैली में 74 कृतियों का सृजन कर उसे सस्ती दरों पर सामान्य जन को उपलब्ध कराया है। वे दीर्घजीवी हों तथा लेखन व प्रवचनों के माध्यम से समाज को दिशा देते रहें, ऐसी कामना है ।
साथ ही प्रकाशन विभाग के प्रभारी श्री अखिल बंसल को धन्यवाद देना चाहेंगे, जिन्होंने प्रकाशन का दायित्व बखूबी निभाया है ।
आप सभी इस कृति के माध्यम से स्वयं के जीवन को सदाचारी और शाकाहारी बनाकर, बनाये रखकर अनन्त सुख एवं शान्ति प्राप्त करें - ऐसी पवित्र भावना है । - परमात्मप्रकाश भारिल्ल महामंत्री, अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन