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समयसार गाथा १३७ से १४०
अब इन गाथाओं में यह स्पष्ट करते हैं कि पुद्गल का परिणाम जीव से भिन्न है और जीव का परिणाम पुद्गल से भिन्न है।
जीवस्स दु कम्मेण य सह परिणामा हु होंति रागादी । एवं जीवो कम्मं दो वि रागादिमावण्णा ॥ १३७॥ एकस्स दु परिणामों जायदि जीवस्स रागमादीहिं । ता कम्मोदयहेदहिं विणा जीवस्स परिणामो ॥ १३८ ॥ जइ जीवेण सह च्चिय पोग्गलदव्वस्स कम्मभावेण । एवं पोग्गलजीवा हु दो वि कम्मत्तमावण्णा ॥ १३९ ॥ एकस्य दु परिणामो पोग्गलदव्वस्स कम्मभावेण । ता जीवभावहेदूहिं विणा कम्मस्स परिणामो ॥ १४० ॥ इस जीव के रागादि पुद्गलकर्म में भी हों यदि । तो जीववत् जड़कर्म भी रागादिमय हो जावेंगे ॥ १३७॥ किन्तु जब जड़कर्म बिन ही जीव के रागादि हों । तब कर्म जड़ पुद्गलमयी रागादिमय कैसे बनें ? ॥ १३८ ॥ यदि कर्ममय परिणाम पुद्गल द्रव्य का जिय साथ हो । तो जीव भी जड़कर्मवत् कर्मत्व को ही प्राप्त हो ॥ १३९ ॥ किन्तु जब जियभाव बिन ही एक पुद्गल द्रव्य का । यह कर्ममय परिणाम है तो जीव जड़मय क्यों बनें ? ॥ १४० ॥ जीव के कर्म के साथ ही रागादि परिणाम होते हैं अर्थात् कर्म और जीव दोनों मिलकर रागादिरूप परिणमित होते हैं' - यदि ऐसा माना जाय तो जीव और कर्म दोनों ही रागादिभावपने को प्राप्त हो जायें; परन्तु रागादिभावरूप तो एक जीव ही परिणमित होता है। इसकारण कर्मोदयरूप हेतु के बिना ही रागादिभाव जीव के परिणाम हैं।
इसीप्रकार 'पुद्गलद्रव्य का जीव के साथ ही कर्मरूप परिणाम होता है अर्थात् जीव और पुद्गल दोनों मिलकर कर्मरूप परिणमित होते हैं' - यदि