SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 381 गाथा १६१-१६३ जानकर उसमें तत्पर रहते हैं, उसका पक्षपात करते हैं। ऐसे कर्मनय के पक्षपाती लोग - जो कि ज्ञान को तो नहीं जानते, कर्मनय में ही खेदखिन्न हैं; वे संसार में डूबते हैं। और कितने ही लोग आत्मस्वरूप को यथार्थ नहीं जानते तथा सर्वथा एकान्तवादी मिथ्यादृष्टियों के उपदेश से अथवा अपने आप ही अन्तरंग में ज्ञान का स्वरूप मिथ्याप्रकार से कल्पित करके उसमें पक्षपात करते हैं। वे अपनी परिणति में किंचित्मात्र भी परिवर्तन हुए बिना अपने को सर्वथा अबन्ध मानते हैं और व्यवहार दर्शन-ज्ञान-चारित्र के क्रियाकाण्ड को निरर्थक जानकर छोड़ देते हैं - ऐसे ज्ञाननय के पक्षपाती लोग जो कि स्वरूप का कोई पुरुषार्थ नहीं करते और शुभ परिणामों को छोड़कर स्वच्छन्दी होकर विषय-कषायों में वर्तते हैं, वे भी संसारसमुद्र में डूबते हैं। मोक्षमार्गी जीव ज्ञानरूप परिणमित होते हुए शुभाशुभ कर्मों को (अर्थात् शुभाशुभभावों को) हेय जानते हैं और शुद्ध परिणति को ही उपादेय जानते हैं। वे मात्र अशुभ कर्मों को ही नहीं; किन्तु शुभ कर्मों को भी छोड़कर, स्वरूप में स्थिर होने के लिये निरंतर उद्यमी रहते हैं - वे संपूर्ण स्वरूपस्थित होने तक पुरुषार्थ करते ही रहते हैं । जबतक, पुरुषार्थ की अपूर्णता के कारण शुभाशुभ परिणामों से छूटकर स्वरूप में सम्पूर्णतया स्थिर नहीं हुआ जा सकता; तबतक - यद्यपि स्वरूपस्थिरता का आन्तरिक-आलम्बन (अन्तः साधन) तो शुद्ध परिणति स्वयं ही है; तथापि - आन्तरिक आलम्बन लेनेवाले को जो बाह्य आलम्बनरूप होते हैं ऐसे (शुद्ध स्वरूप के विचार आदि) शुभ परिणामों में वे जीव हेयबुद्धि से प्रवर्तते हैं; किन्तु शुभ कर्मों को निरर्थक मानकर उन्हें छोड़कर स्वच्छन्दतया अशुभ कर्मों में प्रवृत्त होने की बुद्धि कभी नहीं होती। ऐसे एकान्त अभिप्राय रहित जीव कर्मों का नाश करके संसार से निवृत्त होते हैं।" नाटक समयसार में इस कलश का भावानुवाद इसप्रकार किया गया है -
SR No.009472
Book TitleSamaysara Anushilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy