SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 284 समयसार अनुशीलन दूसरी वस्तु निमित्त होती है; परन्तु वह कुछ करती नहीं है, होने और करने में बहुत बड़ा अन्तर है।' प्रश्न - चौथे, पांचवें व छठे गुणस्थानवालों के चारित्रमोह के उदय से राग-द्वेष हैं; फिर भी आप उन्हें ज्ञाता कहते हो? वे घमासान युद्ध लड़ते हैं, धंधा -व्यापार करते हैं, शादी-ब्याह करते-कराते हैं, तो उनके राग-द्वेष तो हैं ही? भरत और बाहुबली, दोनों क्षायिक सम्यग्दृष्टि और तद्भव मोक्षपामी थे, उन दोनों के बीच युद्ध हुआ, भरत ने ९६ हजार शादियां भी की, तो वे इन राग-द्वेष के परिणामों के कर्ता थे या नहीं? क्या उन्हें राग-द्वेष का कर्ता नहीं कहा जायेगा? उत्तर - नहीं कहा जायेगा; क्योंकि चौथे गुणस्थानवाले जीवों के श्रद्धाज्ञान में परद्रव्य का स्वामित्वरूप से कर्तृत्व का अभिप्राय नहीं है। यद्यपि कषाय का परिणमन है; परन्तु वह उदय की बलजोरी से है, वे उसके ज्ञाता ही हैं, इसकारण अज्ञान सम्बन्धी कर्तापना उनको नहीं है। प्रवचनसार में ४७ नयों के प्रकरण में कहा है कि ज्ञानी को जितना राग का परिणमन है, उसका वह स्वयं कर्ता है - ऐसा कर्तृनयसे जानता है; परन्तु यहाँ वह बात नहीं है। यहां तो दृष्टिप्रधान बात है। दृष्टि की प्रधानता में निश्चय से ज्ञानी को राग का कर्त्तापना नहीं है। जिस अपेक्षा जो बात है, उसी अपेक्षा से उसे यथार्थ समझना चाहिए। प्रश्न- आपने कहा कि ज्ञानी का कषायरूप परिणमन उदय की बलजोरी से है, तो क्या ज्ञानी की रागरूप परिणति कर्म के कारण है ? . उत्तर- नहीं, भाई ! ऐसा नहीं है। बात यह है कि ज्ञानी को राग की रुचि नहीं है, उसका राग करने का अभिप्राय नहीं है। राग में उसका स्वामित्व नहीं है, तथापि राग होता है; क्योंकि वह भी समय-समय की पर्याय का स्वकालरूप पर्यायधर्म है तथा वह ज्ञानी जीव के पुरुषार्थ की हीनता का सूचक १. प्रवचनरत्नाकर, भाग ४, पृष्ठ ३८९ २. वही, पृष्ठ ३९०-३९१
SR No.009472
Book TitleSamaysara Anushilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy