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________________ 279 गाथा १४४ लिखते हैं कि ज्ञप्ति माने ज्ञानगुण और करोती माने मिथ्यात्व रागादिरूप चिक्कणता; इनमें न हि भासते माने एकपना नहीं है। मिथ्यादृष्टि जीव के ज्ञानगुण भी है और रागादि चिक्कणता भी है। कर्मबंध रागादि चिक्कणता से होता है, ज्ञानगुण के परिणमन से नहीं - ऐसा वस्तुस्वरूप है। ज्ञानगुण और अशुद्धपना मिले हुए दिखते हैं, पर हैं भिन्न-भिन्न। इसकारण से ऐसा सिद्धान्त निष्पन्न हुआ कि सम्यग्दृष्टि पुरुष रागादि अशुद्ध परिणाम का कर्ता नहीं होता। भावार्थ इसप्रकार है कि द्रव्य के स्वभाव से ज्ञानगुण कर्ता नहीं है, अशुद्धपना कर्ता है। सो सम्यग्दृष्टि के अशुद्धपना नहीं है; इसलिए कर्ता नहीं है।" उक्त टीका को आधार बनाकर बनारसीदासजी नाटक समयसार में इस कलश का भावानुवाद इसप्रकार करते हैं - (सोरठा) ग्यान मिथ्यात न एक, नहिं रागादिक ग्यान महि । ___ग्यान करम अतिरेक, ग्याता सो करता नहीं ॥ ज्ञान और मिथ्यात्व एक नहीं हैं, ज्ञान में रागादिक नहीं होते तथा ज्ञान और कर्म भी भिन्न-भिन्न हैं, इसकारण ज्ञाता कर्ता नहीं है। ___ उक्त सम्पूर्ण कथन का निष्कर्ष यह है कि जो व्यक्ति स्वयं में ही उत्पन्न होनेवाले रागादिभावों का कर्ता बनता है, उन्हें अपना जानता-मानता है, उसके कर्तृत्वबुद्धिरूप और स्वामित्वबुद्धि (ममत्वबुद्धि) रूप मि' पात्व होता है, अनन्तानुबंधी संबंधी राग-द्वेष होते हैं और वह उनका कर्ता होता है तथा वे उसके कर्म होते हैं। इसप्रकार अज्ञानी (मिथ्यादृष्टि) रागादिभावों का कर्ता होता है और वे रागादिभाव उसके कर्म होते हैं। पर का कर्ता-भोक्ता तो ज्ञानीअज्ञानी कोई भी नहीं है। ___ सम्यग्दृष्टि ज्ञानी के जो रागादिभाव (अप्रत्याख्यानादि संबंधी) पाये जाते हैं, वह उनका कर्ता नहीं बनता, उन्हें अपना नहीं मानता; इसकारण उसे उनमें कर्तृत्वबुद्धि और ममत्वबुद्धि रूप अज्ञान नहीं है, मिथ्यात्व नहीं है, अनन्तानुबंधी राग नहीं है; इसकारण वह उनका कर्ता भी नहीं है और
SR No.009472
Book TitleSamaysara Anushilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1996
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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