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समयसार अनुशीलन
मंगलाचरण
( अडिल्ल छन्द ) समयसार का एकमात्र प्रतिपाद्य जो ।
आत्मख्याति का एकमात्र आराध्य जो ॥ अज अनादि अनिधन अविचल सद्भाव जो ।
त्रैकालिक ध्रुव सुखमय ज्ञायकभाव जो ॥ परमशुद्धनिश्चयनय का है ज्ञेय जो।
सत्श्रद्धा का एकमात्र श्रद्धेय जो ॥ परमध्यान का ध्येय उसे ही ध्याउँ मैं ।
उसे प्राप्त कर उसमें ही रम जाउँ मैं ॥ समयसार अरु आत्मख्याति के भाव को ।
जो कुछ जैसा समझा है मैंने प्रभो ॥ उसी भाव को सहज सरल शैली विर्षे ।
विविध पक्ष से जन-जन के हित रख रहा ॥ इसमें भी है एक स्वार्थ मेरा प्रभो ।
नित प्रति ही चित रहा करे इसमें विभो ॥ मेरे मन का हो ऐसा ही परिणमन ।
मन का ही अनुकरण करें हित-मित वयन । अपनापन हो निज आतम में नित्य ही ।
अपना जानें निज आतम को नित्य ही ॥ रहे निरन्तर निज आतम में ही रमन ।
रहूँ निरन्तर निज आतम में ही मगन ॥ अन्य न कोई हो विकल्प हे आत्मन् ।
निज आतम का ज्ञान ध्यान चिन्तन मनन ॥ गहराई से होय निरन्तर अध्ययन ।
निश-दिन ही बस रहे निरन्तर एक धुन ॥