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________________ 47 गाथा ४ ___'बंध' शब्द का अर्थ 'संबंधी' करते हुए वे लिखते हैं कि कामभोग सम्बन्धी कथा। 'बंध' शब्द का दूसरा अर्थ प्रकृति, प्रदेश, स्थिति और अनुभाग बंध तथा उसके फल में प्राप्त होनेवाली नरकादिरूप चतुर्गति परिभ्रमण भी वे करते हैं। तीसरी गाथा की टीका में बंधकथा का अर्थ गुणस्थानादि पर्याय किया ही था। इसप्रकार समग्ररूप से उनका कहना यह है कि पंचेन्द्रियों के विषयों एवं चार प्रकार के बंध व उसके फल में प्राप्त होनेवाली नरकादि गतियों तथा गुणस्थानादिरूप संसारी पर्यायों की कथा तो इस जीव ने अनन्तबार सुनी है, समझी है, उसका परिचय भी प्राप्त किया है, अनुभव भी किया है; अत: वह कथा तो सर्वसामान्य को सहज ही सुलभ है। किन्तु पर से भिन्न अपने में एकत्व लिए निश्चयरत्नत्रय से परिणित रागरहित भगवान आत्मा की बात सुलभ नहीं है। इसीकारण आचार्यदेव एकत्व-विभक्त भगवान आत्मा की बात आरम्भ करते हैं। आचार्य अमृतचन्द्र इस गाथा की टीका में इसका भाव इसप्रकार व्यक्त करते हैं - __ "यद्यपि यह कामभोग सम्बन्धी (कामभोगानुबद्धा) कथा एकत्व से विरुद्ध होने से अत्यन्त विसंवाद करानेवाली है; तथापि समस्त जीवलोक ने इसे अनन्तबार सुना है, अनन्तबार इसका परिचय प्राप्त किया है और अनन्तबार इसका अनुभव भी किया है। संसाररूपी चक्र के मध्य में स्थित; द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भावरूप अनन्त पंचपरावर्तन से भ्रमण को प्राप्त; अपने एकछत्र राज्य से समस्त विश्व को वशीभूत करनेवाला महामोहरूपी भूत जिसे बैल की भाँति जोतता है, भार वहन कराता है; अत्यन्त वेगवान तृष्णारूपी रोग के दाह से संतप्त एवं आकुलित होकर जिसप्रकार मृग मृगजल के वशीभूत होकर जंगल में भटकता है; उसीप्रकार पंचेन्द्रियों के विषयों से घिरा हुआ है या पंचेन्द्रियों के विषयों को घेर रखा है जिसने;
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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