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________________ समयसार अनुशीलन 454 पाण्डे राजमलजी की कलशटीका के आधार पर निर्मित होने पर भी कविवर पण्डित बनारसीदासजी कनक (स्वर्ण) शब्द का ही प्रयोग करते हैं, चाँदी का नहीं; जो इसप्रकार है। (दोहा ) "खांडो कहिये कनक को कनक-म्यान संयोग। न्यारौ निरखत म्यान सौं लोह कहे सब लोग। वरनादि पुद्गल दसा धरै जीव बहुरूप। वस्तु विचारत करमसौं भिन्न एक चिद्रूप॥ जिसप्रकार सोने की म्यान में रखी हुई तलवार को यद्यपि सभी लोग सोने की तलवार कहते हैं; परन्तु म्यान से न्यारी देखने पर सभी लोग उसे लोह की ही कहते हैं। __ उसीप्रकार यद्यपि पौद्गलिक वर्णादिक के संयोग से जीव अनेक रूप धारण करता है, तथापि वस्तुस्वरूप का विचार करने पर भगवान आत्मा तो कर्मों से भिन्न एक चैतन्यस्वरूप तत्व ही है।" _ 'रुक्म' शब्द का अर्थ चाँदी करो या सोना, उससे मूल प्रतिपाद्य में तो कोई अन्तर नहीं आता है; क्योंकि इसे तो दृष्टान्त के रूप में रखा गया है, दृष्टान्त में तो कोई अन्तर है ही नहीं। आचार्य जयसेन ने स्वर्णपत्र और सोने की म्यान के सन्दर्भ में आचार्य अमृतचन्द्र की टीका का अनुकरण न करके टीका में ही समागत कलश का अनुकरण किया है। तात्पर्य यह हैं कि उन्होंने उदाहरण के रूप में स्वर्णपत्र न लेकर स्वर्ण का असिकोश (म्यान) लिया है। उदाहरण कुछ भी दिये गये हों, पर इन गाथाओं में मूल बात तो यही कही गई है कि वर्ण, रस, गंध, स्पर्श, रूप, शरीर, संस्थान, संहनन और जीवस्थान निश्चय से जीव नहीं हैं, अजीव ही हैं, पुद्गल ही हैं।
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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