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________________ 445 प्रश्न - व्यवहार सत्य है या नहीं? यदि व्यवहार सत्य है तो व्यवहार-मोक्षमार्ग सत्य है या नहीं? और यदि व्यवहार-मोक्षमार्ग सत्य है तो वह निश्चय-मोक्षमार्ग का कारण है या नहीं? उत्तर -भाई ! पर्याय में जो एकसमय मात्र का बन्ध है, वह सत्य है। जो परमस्वभावभावरूप वस्तु है, उसकी एक समय की दशा में ये सब भेद हैं, इसलिए हैं' - ऐसा कहा है; परन्तु ये भेद त्रिकाली ध्रुव की दृष्टि में नहीं आते, इसकारण द्रव्यदृष्टि कराने के लिए वे नहीं हैं' - इसप्रकार उनका निषेध किया है। वे त्रिकाली सत्य नहीं हैं; तथापि व्यवहारनय से वे सत्य हैं; क्योंकि उनका वर्तमान पर्याय में अस्तित्व है। भाई! यदि व्यवहारनय है तो उसका विषय भी है। इसीकारण तो कहा है कि व्यवहार को भी छोड़ना नहीं अर्थात् व्यवहारनय नहीं है - ऐसा नहीं मान लेना। ___ यदि व्यवहार को नहीं मानेंगे तो चौथा, पाँचवाँ आदि गुणस्थान ही नहीं बनेंगे, किन्तु इसका यह अर्थ भी नहीं है कि व्यवहार से निश्चय होता है । इस व्यवहार के कारण (व्यवहार के आश्रय से) तीर्थ अर्थात् सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र होता है - ऐसा नहीं है। यहाँ कहते हैं कि ये भेदरूप भाव त्रिकाली ध्रुवद्रव्य में नहीं हैं - यह निश्चय है; परन्तु उसकी एकसमय की पर्याय में है, इसकारण द्रव्य में हैं, – ऐसा कहा जाए तो व्यवहार से कह सकते हैं। भाई! ऐसा ही नयविभाग है।" इसप्रकार आचार्य अमृतचन्द्र की टीका, पण्डित जयचंदजी छाबड़ा के भावार्थ और स्वामीजी के स्पष्टीकरण से यह बात अत्यन्त स्पष्ट हो जाती है कि व्यवहारनय निश्चयनय का विरोधी नहीं है; अपितु अविरोधक ही है। १. प्रवचनरत्नाकर (हिन्दी) भाग-२, पृष्ठ ३१४ से ३१७ तक
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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