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________________ समयसार अनुशीलन 422 को हटाकर, अनन्तगुणों के अखण्डपिण्ड चित्शक्तिमात्र अविनाशी एक उसी भगवान आत्मा का अनुभव करने की प्रेरणा इस कलश में दी गई है। अब आगामी गाथाओं की उत्थानिका स्वरूप कलश लिखते हैं - ( अनुष्टभ् ) चित्छक्तिव्याप्तसर्वस्वसारो जीव इयानयम्। अतोऽतिरिक्ताः सर्वेऽपि भावाः पौद्गलिका अमी॥३६॥ ( दोहा ) चित् शक्ति सर्वस्व जिन केवल वे हैं जीव / उन्हें छोड़कर और सब पुद्गलमयी अजीव / / 36 // जिसका सर्वस्व, जिसका सार चैतन्यशक्ति से व्याप्त है; वह जीव मात्र इतना ही है; क्योंकि इस चैतन्यशक्ति से शून्य जो भी अन्यभाव हैं, वे सभी पौद्गलिक हैं, पुद्गलजन्य हैं, पुद्गलमय हैं, पुद्गल ही हैं। इस छन्द का भाव अत्यन्त स्पष्ट है / अत: इसके सन्दर्भ में कुछ भी लिखने की आवश्यकता नहीं है। इस छन्द का भाव नाटक समयसार में इसप्रकार व्यक्त किया है - "चेतनबंत अनंत गुन सहित सु आतम राम। यातें अनमिल और सब पुद्गल के परिणाम॥" भगवान आत्मा अनंत गुण सम्पन्न चैतन्यमूर्ति है। चैतनता से मेल न रखनेवाले 29 प्रकार के जो भी भाव हैं; वे सब पुद्गल के परिणमन हैं। यदि हम भगवान आत्मा को न समझ सके, इसका अनुभव न कर सके तो सबकुछ समझकर भी नासमझ ही है, सबकुछ पढ़कर भी अपढ़ हैं, सबकुछ अनुभव करके भी अनुभवहीन ही हैं, सबकुछ पाकर भी अभी कुछ भी नहीं पाया है - यही समझना। - गागर में सागर, पृष्ठ 45
SR No.009471
Book TitleSamaysara Anushilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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